Monday, February 17, 2020

खिलखिलाई धरा

बादलों ने ली अंगड़ाई,
खिलखिलाई ये धरा भी।
चंचला चमकती है आई,  
झिलमिलाई ये धरा भी।

 छूती मेरे तन को हौले
  पवन चले हौले-हौले।
उड़ता जाए भीगा आँचल
मुखड़ा से लट कुछ बोले।
दूर कहीं से आई उड़के
यादें झम से झाँक उठी।
अन्तर्मन की बातें सुनके
खिड़की पे आके बैठी।।

पेड़ों से लिपटी इतराई
किलकिलाई ये लता भी।
बादलों ने ली अंगड़ाई
खिलखिलाई ये धरा भी।।

कलियाँ चटकी खुुशबू फैले 
धरती है महकी महकी।
रिमझिम रिमझिम बरसे बरखा 
बूँदे हैं थिरकी थिरकी।
झूम रहा है तरुवर उपवन
झूम रहा है ये मन भी।
पल्लव पल-पल छेड़ रहे धुन
धरती झूमे जीवन भी।।

भीग वसुंधरा जब नहाई
लहलहाई ये धरा भी।।
बादलों ने ली अंगड़ाई
खिलखिलाई ये धरा भी।।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

7 comments:

  1. बहुत सुंदर सृजन सखी।
    सुंदर गीत ।

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  2. हार्दिक आभार आदरणीय

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  3. सुन्दर मधुर भाव भरी रचना

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  4. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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