उजियारा पूरब से आए
भँवरा गुनगुन गाता है।
सोने के रथ बैठ सवारी
सूरज हँसता आता है।
शीतल ठंडी भोर सुहानी
चहक-चहक चिड़ियाँ चहकीं।
पुरवाई के झोंके लेकर
कुंज-कुंज कलियाँ महकीं।
ताल तलैया पनघट गूँजे
मुर्गा बाँग लगाता है।
उजियारा पूरब ......
ओस चमकती मोती जैसी
धरती पे किरणें बिखरीं।
चमक सुनहरी जग में फैली
हरियाली चूनर निखरी।
अब तो जागो आलस छोड़ो
दिन भी निकला जाता है।
उजियारा पूरब से ....
बस्ता लेकर शाला जाते
नन्हें बाल सलोने जब।
आँगन में दादी भी आकर
माखन लगी बिलोने तब।
बारिश में सब दफ्तर जाते
लेकर अपना छाता हैं।
उजियारा पूरब से.....
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुंदर बाल गीत ।
ReplyDeleteबाल-सुलभ सुंदर कोमल भाव ।
हार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत सुन्दर बाल-गीत !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteबहुत सुंदर गीत दीदी👌👌प्रातःकालीन आभा का बहुत सुंदर वर्णन आलस्य त्याग निज कर्म करने की प्रेरणा देता सुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार पूजा।
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