क्षण भर में ही काट दिया
वृक्ष खड़ा था एक हरा
सीमेंटी ढांचा गढ़ने के लिए
ये कैसा क्रूर प्रहार किया
क्यों अनदेखी कर रहा मानव
प्रलय के आरंभ को
हरित धरा को वंश मिटाकर
जीवन में घोल रहा विष को
क्रोध मचाती प्रकृति से
क्यों मूँद रखी अपनी आँखें
जिन पेड़ों की छाया में खेले
काट रहे वो ही शाखें
हर तरफ मची त्राहि-त्राहि
हर तरफ से विपदा ने घेरा
मंदमति इस मानव का
दिखता है रोज नया चेहरा
स्वार्थ हुआ जीवन पे हावी
चला रहा वृक्षों पर आरी
पर्यावरण की क्षति देखकर
मानवता व्याकुल हो हारी
मानवता व्याकुल हो हारी
सुलग उठी है आज धरा भी
प्रचंड सूर्य की ज्वाला में
छायादार वृक्षों को मिटा रहा
इंसान दौलत की हाला में
नशा चढ़ा ऐसा शौहरत का
स्वार्थ बन गई बीमारी
इंसानी करतूतों से उपजी
अभिशाप बन गई महामारी
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
चित्र गूगल से साभार
ये प्रवृति इंसान में तेज होती जा रही है ...
ReplyDeleteअपने स्वार्थ से आगे वो कुछ नहीं देख रहा ... प्रकृति के गुस्से को समझ नहीं रहा ...
काश कुछ सन्मति आए .... सार्थक रचना है ...
धन्यवाद आदरणीय
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 08 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया 🌹
Deleteहर तरफ मची त्राहि-त्राहि
ReplyDeleteहर तरफ से विपदा ने घेरा
मंदमति इस मानव का
दिखता है रोज नया चेहरा
आज इतनी महामारी फैलने के बाद भी इंसान अपनी ही धुन में मग्न हैं,बस सब कुछ खबर में सुन लेना और फिर बेफिक्र होकर सो जाना,
समझ नहीं आता हम अब नहीं सुधरेगें तो फिर कब?बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति सखी ,सादर नमन आपको
धन्यवाद सखी 🌹
Deleteसहृदय आभार सखी
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