मानवता को आज मिटाकर
निर्धन का अपमान किया।
मार गरीबों को फिर ठोकर
अनुचित ही यह काम किया।
दीन हीन को ठोकर मारे
भूल रहे सच्चाई को।
बढ़ी हुई जो भेदभाव की
पाट न पाए खाई को।
मँहगाई ने मूँह खोलकर
निर्बल को लाचार किया।
बढ़ी कीमतें कमर तोड़ती
रोग पसारे पाँव पड़ा।
काम काज कुछ हाथ नहीं जब
रोज खड़ा फिर प्रश्न बड़ा।
किस्मत ने भी धोखा देकर
जीवन में अँधकार किया।
लाभ उठाए लोभी पल पल
देख नियति की यह रचना।
लूट रहे सब बन व्यापारी
लोभ बिगाड़े संरचना।
दूध फटे का मोल लगाया
ऐसा भी व्यापार किया।
*©®अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️*
चित्र गूगल से साभार
सुन्दर
ReplyDeleteमानवता को आज मिटाकर
ReplyDeleteनिर्धन का अपमान किया।
मार गरीबों को फिर ठोकर
अनुचित ही यह काम किया।
यथार्थपरक बेहतरीन रचना...👌💐🌹
हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteलाभ उठाए लोभी पल पल
ReplyDeleteदेख नियति की यह रचना।
लूट रहे सब बन व्यापारी
लोभ बिगाड़े संरचना।
दूध फटे का मोल लगाया
ऐसा भी व्यापार किया।
..। सारगर्भित एवं सामयिक रचना..।
हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
Deleteबढ़ी कीमतें कमर तोड़ती
ReplyDeleteरोग पसारे पाँव पड़ा।
काम काज कुछ हाथ नहीं जब
रोज खड़ा फिर प्रश्न बड़ा।
किस्मत ने भी धोखा देकर
जीवन में अँधकार किया।
बहुत अच्छी रचना
साधुवाद 🙏🌹🙏
हार्दिक आभार आदरणीया।
Deleteहार्दिक आभार सखी
ReplyDeleteलाभ उठाए लोभी पल पल
ReplyDeleteदेख नियति की यह रचना।
लूट रहे सब बन व्यापारी
लोभ बिगाड़े संरचना।
दूध फटे का मोल लगाया
ऐसा भी व्यापार किया।
सुन्दर सृजन..
हार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteदीन हीन को ठोकर मारे
ReplyDeleteभूल रहे सच्चाई को।
बढ़ी हुई जो भेदभाव की
पाट न पाए खाई को।
मँहगाई ने मूँह खोलकर
निर्बल को लाचार किया।
वाह!!!
कमाल का सृजन...एकदम सटीक सार्थक ।
हार्दिक आभार सखी
Deleteहार्दिक आभार आदरणीय।
ReplyDeleteसामायिक ही क्या हर समय का सच है यह ।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति सुंदर नवगीत सखी।