Monday, January 11, 2021

झूठ का अस्तित्व


 राह के रोड़े बने जो
आज उनको तोड़ना है ‌।
जो बुझाए दीप सारे 
आँधियाँ वो मोड़ना है।

कौरवों के छल कपट की
पीर द्रोपदी क्यों सहती।
ठान बैठी जिद प्रलय की
क्रोध बनके आग बहती।
हाथ तन छूने बढ़े जो
खींच आज मरोड़ना है।
राह की अड़चन....

बैर बनके रोग पनपे
आग ऐसी मन लगी है।
भावनाएं मर चुकी अब
वासना तन मन जगी है।
काँपता अब सत्य पूछे 
बोल कितना दौड़ना है।
राह की अड़चन....

व्याधियाँ सिर पे खड़ी तब
झूठ का अस्तित्व आँका।
सत्य के रण में उतर फिर
धर्म की फहरी पताका।
प्रेम अब अंतस जगा के
बैर पीछे छोड़ना हैं।
राह की अड़चन....
©®अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️

चित्र गूगल से साभार


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