खून-पसीना एक करके
तिनका-तिनका जोड़ा
प्यारा सा सुंदर घरौंदा
अपनों ने ही तोड़ा
हाथों से सहला दुलराते
दीवारों को सजाया
भरा प्रेम का रंग अनोखा
रिश्तों के संग बसाया
कल तक गोद में रहते सिमटे
भूल गए वो बालक
आज बिखरते रिश्ते सारे
बोझ बने हैं पालक
रुला रहे हैं खून के आँसू
अब अपने ही जाए
बूढ़ी होती दुर्बल काया
कहीं ठौर न पाएं
कलयुग की यह कैसी लीला
औलाद पिता पर भारी
जीते जी माँ की छाती पर
संतान चला रही आरी
करनी कुछ कथनी है झूठी
सोशल मीडिया दिखाते
लाइक कमेंट का शौक लगाए
झूठी सेल्फी सजाते
सच यही इस जीवन का
बाकी सब छलावा
मात-पिता को प्रेम के बदले
मिलता है सदा दिखावा।
©®अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार
कटु सत्य..!
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 20 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteबेहद खूबसूरत रचना भूल गए वो, कई यादों को ताजा कर गयी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteअत्यंत मार्मिक रचना...
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteधन्यवाद आदरणीय
ReplyDeleteमर्म को छूती हुई ... सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteरुला रहे हैं खून के आँसू
ReplyDeleteअब अपने ही जाए
बूढ़ी होती दुर्बल काया
कहीं ठौर न पाएं
आज के सत्य को उजागर करती बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना।
बिछड़े सभी बारी-बारी !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteकटु यथार्थ के धरातल पर हृदयस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteसुंदर कविता
ReplyDeleteसुंदर ब्लॉग
बहुत बहुत बधाई
🌷🌻🌷
धन्यवाद आदरणीय
Deleteबूढ़ी होती दुर्बल काया
ReplyDeleteकहीं ठौर न पाएं
सत्य को उजागर करती रचना।
हार्दिक आभार आदरणीय
Delete