जिस धरती ने हमें जीवन दिया
आज उस धरती पर
हमारी निगेटिव सोच ने ही
वायरस को जन्म देकर
हमें
पॉजिटिव और निगेटिव
के चक्रव्यूह में फंसा दिया
और अब हम
अभिमन्यु की तरह
बाहर निकलने के
जी तोड़ प्रयास में लगे
मगर रास्ता है कि हमें
नजर नहीं आता
चीखती रातें
सिसकियाँ भरते दिन
जलती आशाओं से
उठती धुएं की रेख
उखड़ती साँसों को थामें
मशीनों के अलार्म
टेढ़ी-मेढ़ी भागती लाइनों में
ज़िंदगी की हलचलों को
ढूँढती
आँखों में नमी लिए
निगेटिव विचारों से घिरी
हर पल ज़िंदगी सोचती
क्या फिर पहले सी
लौट पाएगी हरियाली
जो जीवन और धरती
दोनों के लिए जरूरी थी
या यहीं से किसी और
मंज़िल का सफर शुरू होगा?
पल पल पॉजिटिव
सोच को खत्म करने की आदत से
मानवता आज खुद सहमी हैं
पॉजिटिव शब्द को सुनकर
सृष्टि की अनदेखी कर
आज हमने खुद को
वहाँ खड़ा कर दिया है
जहाँ एक और कुआँ
तो दूसरी और खाई नजर आती है।
©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️
चित्र गूगल से साभार
हार्दिक आभार सखी
ReplyDeleteहम खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारे बैठे हैं । और अभी भी सतर्क नहीं हुए हैं।
ReplyDeleteविचारणीय रचना ।
हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteबहुत सुंदर विचारणीय प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार ओंकार जी
Deleteजिस धरती ने हमें जीवन दिया
ReplyDeleteआज उस धरती पर
हमारी निगेटिव सोच ने ही
वायरस को जन्म देकर
हमें
पॉजिटिव और निगेटिव
के चक्रव्यूह में फंसा दिया
बिलकुल सत्य कहा सखी,ये विचरणीय घडी है,जो विचरेगा वही इस धरा पर अपना आस्तित्व कायम रख पायेगा,सदर नमन
हार्दिक आभार सखी।
Deleteविचारोत्तेजक सृजन! सटीक बातें सखी बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी।
Deleteसामयिक ,विचारणीय सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया दी।
Deleteबहुत ही विचारणीय रचना 👌👌👌
ReplyDeleteबात ठीक है पर इस बात का रस्ता भी हम स्वयं खोजेंगे ...
ReplyDeleteमिल भी जाएगा ...
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार दी।
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