Sunday, April 18, 2021

चीखती परछाइयाँ


रात की कालिख लपेटे
शून्यता कहे कहानी।
फिर बिखरती आस पूछे
पीर यह कैसी पुरानी।

गूँजती अब मौन चीखें
आह का क्रंदन सुनाती।
हर गली में मौत से डर
श्वास बस छुपती छुपाती।
है समय की चाल टेढ़ी
बात कब किसी ने मानी।
रात की कालिख लपेटे
शून्यता कहे कहानी।

सुलगते शमशान कहते
सत्य तेरा पहचान ले।
काठ की गठरी सुलगती
फिर नहीं कोई नाम ले।
चीखती परछाइयों की
पीर कब गई पहचानी।
रात की कालिख लपेटे
शून्यता कहे कहानी।


काल की बोले कुठारी
प्यास जीवन से बुझेगी।
गिन रहा अम्बर सितारे
कभी यह गणना रुकेगी।
कर रही है मौत आहट
चाल नहीं यह अनजानी।
रात की कालिख लपेटे
शून्यता कहे कहानी।

©®अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार

16 comments:

  1. गूँजती अब मौन चीखें
    आह का क्रंदन सुनाती।
    हर गली में मौत से डर
    श्वास बस छुपती छुपाती।
    है समय की चाल टेढ़ी
    बात कब किसी ने मानी।
    हृदयस्पर्शी सृजन सखी।

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  2. हार्दिक आभार सखी।

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  3. आपकी कविता तो सदा की भांति प्रभावी, मर्मस्पर्शी एवं आपके सृजन के चितपरिचित स्तर के अनुरूप ही है आदरणीया अनुराधा जी। मुझे छंदबद्धता में कहीं-कहीं कुछ त्रुटि अनुभव हुई। अन्यथा न लगे तो एक बार पुनरावलोकन कर लीजिएगा।

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    1. जी हार्दिक आभार आदरणीय।

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  4. वर्तमान समय की सच्ची तस्वीर पेश करती सुंदर रचना

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    1. हार्दिक आभार अनीता जी।

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  5. वर्तमान समय का चित्र खींच दिया है ....मन सिहर सिहर जाता है । आज बिल्कुल यही हालात हैं जो इस रचना में वर्णित हैं ।

    एक शब्द टाइपिंग की गलती दिखा रहा है ...
    गढ़ना / गणना कर लें ।

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    1. जी हार्दिक आभार आदरणीया

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  6. जो हो रहा है,जो महसूस किया जा रहा है
    उसको इस रचना में आपने जो व्यक्त किया है
    वह कमाल है
    मार्मिक सच को बयान करता
    मन को छूता सृजन

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  7. आज के समय को उकेरती हृदय स्पर्शी रचना।
    बहुत सुंदर सखी।

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  8. वाह , आज की व्यथा वेदना को समर्थ स्वर देती बहुत ही सुन्दर सशक्त मार्मिक गीत .

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    1. हार्दिक आभार गिरिजा जी

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  9. वर्तमान को शब्दों में उतार दिया है ...
    सुन्दर भावपूर्ण रचना ...

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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