Friday, July 13, 2018

कर्मयोगी बन



मत हो हताश
न छोड़ आस
उठ चल कर्म कर
दीप जला अंधेरा हटा
हवा के रुख को मोड़ ले
कर्म कर कर्मयोगी बन
दृढ़ संकल्प का भान कर
लक्ष्य का ज्ञान कर
धर्म कर्म से पूर्ण हो
मानवता से प्यार कर
कोई अंधेरा नहीं घना
ज्ञान का प्रकाश कर
दुखियों के दर्द दूर कर
जहां में ऊंचा नाम कर
तुम भाग्य विधाता खुद अपने
जीवन की तस्वीर बदल
कर्म कर कर्मयोगी बन
***अनुराधा चौहान***


15 comments:

  1. वाह बहुत सुन्दर कर्म का मर्म समझाती हौसला बढाती रचना।

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    1. सादर आभार कुसुम जी

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  2. कर्मयोगी बनने की प्रेरणा देती हुई सुंदर रचना 👌👌👌

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  3. बहुत सुंदर रचना

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  4. सुंदर रचना बधाई

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  5. वाह कर्म प्रधानता मेरा मन चीता भाव
    शब्दों मैं कर्म भरा है दे सब को नेक सलाह !

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    1. बहुत बहुत आभार इंदिरा जी

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  6. बहुत सही लिखा आपने अनुराधा जी।कर्मयोगी बनने में ही जीवन सार्थक है ।अकर्मण्यता तो एक अभिशाप है ।

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    1. जी सत्य कहा रेणू जी सादर आभार

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  7. प्रेरणा देती हुई रचना
    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    संजय भास्‍कर
    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

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    1. जी अवश्य सादर आभार आदरणीय

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  8. बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी मेरी रचना को साझा करने के लिए

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  9. वाह!!बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।

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