मत हो हताश
न छोड़ आस
उठ चल कर्म कर
दीप जला अंधेरा हटा
हवा के रुख को मोड़ ले
कर्म कर कर्मयोगी बन
दृढ़ संकल्प का भान कर
लक्ष्य का ज्ञान कर
धर्म कर्म से पूर्ण हो
मानवता से प्यार कर
कोई अंधेरा नहीं घना
ज्ञान का प्रकाश कर
दुखियों के दर्द दूर कर
जहां में ऊंचा नाम कर
तुम भाग्य विधाता खुद अपने
जीवन की तस्वीर बदल
कर्म कर कर्मयोगी बन
***अनुराधा चौहान***
वाह बहुत सुन्दर कर्म का मर्म समझाती हौसला बढाती रचना।
ReplyDeleteसादर आभार कुसुम जी
Deleteकर्मयोगी बनने की प्रेरणा देती हुई सुंदर रचना 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteThanks
Deleteसुंदर रचना बधाई
ReplyDeleteवाह कर्म प्रधानता मेरा मन चीता भाव
ReplyDeleteशब्दों मैं कर्म भरा है दे सब को नेक सलाह !
बहुत बहुत आभार इंदिरा जी
Deleteबहुत सही लिखा आपने अनुराधा जी।कर्मयोगी बनने में ही जीवन सार्थक है ।अकर्मण्यता तो एक अभिशाप है ।
ReplyDeleteजी सत्य कहा रेणू जी सादर आभार
Deleteप्रेरणा देती हुई रचना
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
जी अवश्य सादर आभार आदरणीय
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी मेरी रचना को साझा करने के लिए
ReplyDeleteवाह!!बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद शुभा जी
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