Wednesday, February 27, 2019

अभिशाप

लालसा....
किसी से जीतने की अत्याधिक लालसा
कभी-कभी बर्बादी की वजह बन जाती है
हम अपना सबकुछ हार जाते हैं
लालसा मानव जीवन का अभिशाप बन जाती है
गरीबी...
गरीब करते हैं मजदूरी
दिन-रात पसीना बहाते
कड़ी मेहनत के बाद भी
सिर्फ रूखी-सूखी खाते
दुःख की रात ढलती नहीं
गरीबी मानव जीवन का अभिशाप बनी
बरोजगारी...
माँ-बाप खून-पसीना बहाते
और बच्चे करते कड़ी मेहनत
होड़ में सब हैं कामयाबी की
डिग्री लिए घूमते मिलती नहीं नौकरी
बेरोजगारी मानव जीवन का अभिशाप बनी
प्रेम....
प्रेम दिलों को जोड़ता है
जीवन में रिश्तों के रंग भरता है
कभी-कभी प्रेम जनून बन जाता है
नाकाम इंसान कुछ ग़लत कर जाता है
तो प्रेम मानव जीवन का अभिशाप बन जाता है
आतंक....
आतंक ने जीना हराम किया
कभी कहीं तो कभी कहीं
अपने कारनामों को अंजाम दिया
दिल को सबके दहला जाती हैं
आतंकियों की नापाक हरकतें
आतंक मानव जीवन का अभिशाप बना
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, February 26, 2019

विजयपथ पर

विजयपथ पर निकल पड़े हैं
वो लेकर सीने में आग
दुश्मन भी दहल गया
देख अपना यह अंजाम
पुलवामा के हादसे में
वीरों को हमसे छीना था
घुस कर उनके घर में मारा
दुश्मन का छलनी छीना था
एक के बदले दस-दस मारे
गिन-गिन कर लिया हिसाब
यह भारत के वीर जवान हैं
जिन्होनें कभी भी ना मानी हार
यह तो सिर्फ छोटी सी झलक थी
पूरी पिक्चर अभी बाकी है
संभल जाओ आतंक के मसीहा 
तुम्हारा समूल नाश अभी बाकी है
जो घाव दिया है तुमने हमको
वही हाल तुम्हारा हो जाएगा
विजयपथ पर निकले हैं अब
आसमान से किया धमाका
वीरों की शहादत पर सेना की
यह तो सिर्फ श्रद्धांजली थी
बदला तो अब शुरू होगा
हर दर्द का गिनकर हिसाब होगा
जल उठी है हर सीने में अब
यह आग है केवल क्रांति की
धरती माता भी माँग रही है
बदला वीरों की शहादत का
***अनुराधा चौहान***

Sunday, February 24, 2019

साथी जन्मों के

अनजाना सा सफर था
कुछ लम्हों का यह मिलन था
अनजानी राह में 
मंजिल की चाह में 
अजनबी एक-दूजे से
 अनजानी डगर थी
चला सिलसिला बातों 
ख्यालों से ख्याल मिले
नयनों से नयन मिले 
अहसास कुछ छलक पड़े
अधरो पर मौन लिए 
कुछ क़दम और साथ चले
मन में छिपे हुए भाव 
नयनों से झलक उठे
हृदय की धड़कन में 
गीत कोई बजने लगा
अनजाना सफर 
अब पहचाना लगने लगा
ख्यालों में तुम संग 
ख्वाब कोई बुन गया
मुँद गई पलकें सहसा 
तस्वीर तेरी झलक गई
सांँसों की डोर 
तुम संग बंध गई
प्रीत का अहसास 
मन को लुभाने लगा
साथ हमसफ़र का 
मन को रास आने लगा
जाने कब मैं बन गई 
तेरे जीवन की रागिनी
बातें कब तेरी
मन को रास आने लगी
पतझड़ के मौसम में
बहार खिलखिलाने लगी
अधरो पर थिरक उठे 
बोल किसी गीत के
जीवन का अर्थ नही 
अब बिना मेरे मीत के
साथ कुछ लम्हों का 
मेरे दिल में समा गया
साथी जन्मों के साथ 
मैंने है पा लिया
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Saturday, February 23, 2019

करार आने दे

सांझ ढलने लगी
चाँद मुस्कुराने लगा
चाँदनी भी हंँस कर
आँगन में गई उतर
ऐ रात जरा ठहर के चल
अभी तो बाकी है प्रहर
थोड़ी देर रुक सही
जरा दिल को करार आने दे
तारों को जगमगाने दे
जाग उठे सुखद अहसास
चली फागुनी बयार
तन-मन में मची सिहरन
ऐ बहार थोड़ा रुक जरा
अभी बसंत गया नहीं
प्रिय को पास आने दे
जरा दिल को करार आने दे
बिखरने लगे ओस के मोती 
यहाँ फूलों पर निखर-निखर
ऐ अंधेरे मुझे यूँ न सता
थोड़ी देर तो जरा ठहर
चिराग  प्रेम के जलने दे
जरा दिल को करार आने दे
***अनुराधा चौहान***

Friday, February 22, 2019

टुकड़े दिल के

खिलौना समझ कर तुम
कर गईं थीं टुकड़े दिल के
मैं अचंभित-सा खड़ा मौन
सुनता रहा तुम्हारे कटु वचनों
बींध दिया अंतर्मन मेरा
तेरे तीष्ण प्रहारों ने
रौंद डाले मेरे स्वप्नों को
अपने कदमों तले
लौट गईं तुम तो वापस
अपनी चकाचौंध भरी दुनियाँ में
मैं समेटता रहा खुद को
तिनका-तिनका बिखरने से
यादों में डूबते-उतराते
खड़ा हुआ अपने कदमों पर
संभला भी नहीं कि तुम लौट आईं 
अतंस में प्रेम की लौ जगाती
फिर वही कोमल अहसास ले
यह कोई छल है या सत्य
या फिर वार करने का प्रयास कोई
गूंजती है आज भी कानों में
दिल भेदती हुई बातें
अनगिनत जख्म दे गईं थीं तुम
वक़्त के मरहम से संभला हूँ
फिर तुम्हें देख अचंभित हूँ
पर मृगतृष्णाओं के पीछे
भागना छोड़ दिया मैंने
प्रेम लताएं अब सूख चुकी है
समझ गया हूँ मैं यह खूब
रेगिस्तान में कोंपले नहीं खिलती
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, February 20, 2019

उम्मीद का दामन थाम

जब धूमिल हुए
जिंदगी के रंग
कैसा फागुन
कैसा बसंत
मन अंधेरे में
डूबता जाता है

तब रुको नहीं
डरो नहीं
उम्मीद का दामन 
थाम कर उजाले 
की ओर कदम बढ़ा

जीवन में कोई भी
चाहत नहीं हो
मन परेशानी में
घिरा हुआ हो
अतीत की यादों
डूबता जा रहा हो

तब रुको नहीं
डरो नहीं
उम्मीद का दामन 
थाम कर उजाले 
की ओर कदम बढ़ा

जीवन में अँधेरा
छाने लगे
उदासी दामन
फैलाने लगे
मन में आशा के
दीप बुझे हो

तब रुको नहीं
थको नहीं
उम्मीद का दामन
थाम कर की उजाले
की ओर कदम बढ़ा

नकारात्मक सोच
से बाहर निकल
सकारात्मक सोच
को साथ लेकर
दुविधाएँ जीवन की
मिटाते हुए

तब रुको नहीं
थको नहीं
उम्मीद का दामन
थाम कर उजाले
की ओर क़दम बढ़ा

जीवन संकट
से घिरा रहे
चारों और
अँधियारा दिखे
सूझे न फिर को
उपाय

तब रुको नहीं
डरो नहीं
उम्मीद का दामन 
थाम कर उजाले 
की ओर कदम बढ़ा

परिस्थितियां
विपरीत हो चाहें
रास्ते में हों बाधाएं
मन को करार न आए
 दिल घबराने लगे

तब रुको नहीं
डरो नहीं
उम्मीद का दामन 
थाम कर उजाले 
की ओर कदम बढ़ा

मंज़िल पाने की
चाहत से मन
 हताश हो उठता
हार मान कर
रुकने लगता

तब रुको नहीं
डरो नहीं
उम्मीद का दामन 
थाम कर उजाले 
की ओर कदम बढ़ा


कुछ उजाला
सूरज से लेलो
शीतलता चाँद से
सारे प्रयास सफल
हो जाएंगे तब जब
जीवन में भरोगे उजास
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Monday, February 18, 2019

बुढ़ापा

बीता बचपन आई जवानी
ढलती रही उम्र वक़्त के साथ
बुढ़ापे ने भी दे दी दस्तक
भागता रहा समय का चक्र
ये क्षणभंगुर जीवन के पल
यह भी ढल जाएंगे ढलते-ढलते
बस यादें ही हैं खट्टी-मीठी
जिनके संग अब ज़िंदगी बीते
तजुर्बोे की पोटली से निकले
इस क्षणभंगुर जीवन का सार
आँखो की कमजोर रोशनी
रुखा होता अपनों का व्यवहार
बुढ़ापा होता जीवन पर भारी
आश्रित जीवन बना लाचारी
कम होता बच्चों का प्यार
कैसा है ये उमर का पड़ाव
बिखरती आशाएं दम तोड़ते सपने
झुर्रियों के जाल में फंसा मन
ढलती उम्र जीने की माया
कमजोर मन निर्बल होती काया
आँखो में घूमता अतीत का साया
बुढ़ापे ने दी जब से जीवन में दस्तक
खत्म हुआ रौब, शान-शौकत
जीवन की मीठी यादों में
अब यह जीवन बीत रहा
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Sunday, February 17, 2019

शहादत को नमन

तिरंगे में लिपट कर लौटे
जब भारत मांँ के लाल
दुःख के आगोश में
डूब कर देश हूआ बेहाल
माँ-बाप का देख करुण क्रंदन
हर भारतवासी की हैं आँखे नम
बच्चों का करुण रुदन देख
छलनी हो रहा है मन
शहीद की विधवाओं
के आँसूओं से
भींगा धरती का आँचल
देख उनकी पीड़ा को
समय भी गया सहम कर रुक
मिटा सिंदूर उतरे कंगन
लरजते हाथों से उतरे मंगलसूत्र
दूधमुंहे बच्चों ने अभी 
ठीक से आँखो को खोला था
बेदर्दी आतंकियों ने उनके 
सिर से छीना पिता का साया 
उस नन्हे बालक ने अभी
पिता का मतलब भी न जाना
दो माह की नन्ही उम्र में पड़ा
पिता की चिता को मुखाग्नि देना
तिरंगा लगा सीने से 
पिता फफक कर रो उठा
तड़प उठी बेटियां भी
जब साथ बाबुल का छूट गया
यह कैसी विदाई बाबुल से
न मेंहदी लगी न डोली उठी
आंगन से बाबुल की अर्थी उठी
कलेजे का टुकड़ा दूर हूआ
माँ तड़प उठी बेहोश गिरी
साजन का साथ छूटता देख
पत्नी भी चीख कर रो पड़ी
वीरों की शहादत को देख कर
आसमां भी कदम चूम गया
सारी दुनियाँ ने भी अदब से
शहीदों की शहादत को नमन किया
वीरों को शत् शत् नमन
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Saturday, February 16, 2019

वृक्ष की व्यथा

खड़ा हूँ निष्प्राण-सा
बिल्कुल अकेला
नहीं लगता अब
मेरे पास कोई मेला
गर्व था कभी बहुत 
हरी-भरी काया पर
विशाल घना घेरा
ठंडा शीतल बसेरा
बैठते पथिक जब
मेरी ठंडी छाया में
एक दंभ महसूस
करता में अपनी शान 
सूरज की किरणों को
रोक लेता में पुरजोर
बारिश के वेग का 
नहीं चलता था मुझ पर जोर
पक्षियों का मैं बसेरा
उनके कलरव से गूंजता सबेरा
जब चलती तेज हवाएं
मेरी शाखाओं को हिलाती
पत्तियों से टकराकर
मधुर संगीत-सा सुनाती
अब खड़ा ठूंठ बनकर
मिटने वाला है मेरा वजूद
यादें अतीत की सताती
हवाएं भी नहीं सहलाती
भूले से भी नहीं बैठते पंछी
सिर्फ जरूरतमंद पास आते
तोड़ डालियां चूल्हे जलाते
मेरी व्यथा को और बढ़ाते
सबको मेरे गिरने का इंतजार
सूखा वृक्ष हूंँ मैं बिल्कुल बेकार
***अनुराधा चौहान***

अब और नहीं

मानवता की एक ही पुकार
अब और नहीं अब और नहीं
वीरों की शहादत और नहीं
कब तक सहेंगे पीठ पर वार
अब आमने-सामने हो वार
पुलवामा के हादसा देख
दहल गया पूरा हिंदुस्तान
वीरों की शहादत को देख
मानवता चित्कार कर उठी
अब और नहीं अब और नहीं
वीरों की शहादत और नहीं
पाकिस्तान को सबक सिखाना है
अब कड़े कदम उठाना है
मसूद अजहर के सिर पर
रखा है जिस-जिस ने हाथ
मिल के करो उसका बहिष्कार
उठो जागो हुंकार भरो
पाकिस्तान को जवाब दो
अब और नहीं अब और नहीं
आतंकवाद अब और नहीं
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Thursday, February 14, 2019

वीरों की शहादत

टूटी लाठी झुका बुढ़ापा 
बिछड़ गया है लाल मात का
बच्चे हो गए जुदा पिता से
खोया साया खोयी हँसी भी
मिटा सुहाग टूट गईं चूड़ी 
आँंखे पथराई देख पिता की
बिलख रही माँ हृदय लगाकर 
एक झटके में उजड़ी दुनियांँ
चकनाचूर हुए सब सपने
हँस के गए थे घर से अपने
ओढ़ तिरंगा वो चुप सो गए 
फिर आने का टूटा वादा
खत्म हुई खुशियों की मंज़िल
वीरों की शहादत पर अब
धरती माँ चित्कार उठी
पहले उरी अब पुलवामा
अब तो कुछ शर्म करो
अब धीरज नहीं अब रण करो
कब तक चलेगा कत्लेआम
कब तक यूंँ शहीद होंगे जवान
अब आर-पार की लड़ाई करो
मानवता की हत्या कर गई
पाकिस्तान की नापाक हरकतें
आदिल अहमद, मसूद अजहर
जिनके साए में पलते यह अजगर
आतंक के उस माई-बाप को
इस दुनिया से ही खत्म करो
अब सांत्वना नहीं कर्म करो
दुश्मन का संहार करो
सर्वनाश करो सर्वनाश करो
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित
देश के वीर सपूतों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि 🙏🙏

डाल-डाल फूले पलाश

झरे पात पतझड़ में 
सूनी हो गईं डालियां
ऋतुराज ले आया बहारें
फूल उठी हैं कलियांँ
अंबर में ऊषा की लाली
पेड़ों पर सुर्ख पलाश
कुछ झर कर धरती बिछे
चहूँ और लाल ही लाल
दहकते अंगारों जैसे
मखमली लाल पलाश 
अनुराग भर रहे मन में
नव पल्लव के पात
सुर्ख होती फुगनियों पर
चहकते पंछियों का शोर
नव प्रसून खिले उठे
लो आई बसंती भोर
सूरज की किरणों से
दहक उठे सुर्ख अंगारे
चली फागुनी बयार
उमंग हर मन में भरने
खिले पलाश वन-वन
प्रकृति खिली कण-कण
डाल डाल फूले पलाश
बह रही बसंती बयार
मन में भरता उल्लास
अनुराग भरा यह मधुमास
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

प्रेम का कोई दिन नहीं

प्रेम का कोई दिन नहीं
प्रेम का कोई माह नहीं
प्रेम आत्मा की आवाज है
प्रेम सृष्टि का आधार हैं 
यह एक सुखद एहसास है
बंधी डोर रिश्तों की प्रेम से
मिट जाते कलह क्लेष सब
प्रेम हृदय की आवाज़ है
भावनाओं का सम्मान है
अंधेरे मन का उजाला है
प्रेम कोई शब्द नहीं
ख़ामोश आँखो की जुबां है
प्रेम अथाह सागर है
यह साधना है त्याग है
प्रेम ईश्वर का वरदान है 
दर्द का मरहम है प्रेम
टूटे दिलों को जोडे
वह पावन बंधन है यह
आँखें कहती प्रेम की भाषा
सुंदर पावन यह परिभाषा
निर्मल झरने-सा प्रवाह है प्रेम
दिल की गहराईयों में बसा प्रेम
प्रेम वासना नहीं समर्पण है
दिल से दिल को अर्पण है
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Wednesday, February 13, 2019

गरीबी का दर्द

धरती के बिछौने पर
आसमांँ की चादर ओढ़े
थर-थर काँंपता
बचपन फुटपाथ पर
भूख से तड़पता
दो रोटी की आस में
अमीरों के शहर में
उन्हें दिखते यह दाग से
कूड़े के ढेर पर
ढूंढते रोटी के टुकड़े
इस संसार का
एक यह भी जीवन है
जर्जर काया लिए
अभाव में तरसते
झेलते गरीबी का दर्द
रोजी-रोटी को तलाशते
सांझ को निढाल हो
फिर भूख को ओढ़कर
करवटें बदलते हुए
गरीबी ज़िंदगी का
बदनुमा दाग बन
लील जाती ज़िंदगियांँ
न खाने को भोजन
न इलाज की सुविधा
एक दिन वहीं सड़क पर
लाश बनकर पड़े रह जाते
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Friday, February 8, 2019

प्रिय आ जाओ

प्रिय आ जाओ
हिय में हूक उठी
फूली अमराई
कोयलिया कूक उठी
कलियांँ चटकी
फुलवारी खिल उठी
फूलों पर हो रहा
भंवरों का गान
प्रिय आ जाओ
हिय में हूक उठी
फूल उठी सरसों
आई ऋत मनभावन
पीली चूनर ओढ़ धरा
दिखलाती अपना यौवन
प्रिय आ जाओ
हिय में हूक उठी
पेड़ों के झुरमुट से
झांकती धूप
झील के पानी में
दिखे तेरा ही रूप
याद तेरी तड़पाए
विरह की आग जलाए
प्रिय आ जाओ
हिय में हूक उठी
मौसम बहारों का
ले आया ऋतुराज
देर न कर प्रिय आ जाओ
कहीं बीत न जाए मधुमास
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

दहलीज की शोभा


बेटी बन बाबुल की
दहलीज की रखी मर्यादा
दिल पर पत्थर रख
माँ-बाप का घर छोड़ा
चली साजन के घर
अपने दिल को तोड़ा
सपनों की बांध पोटली
तिजोरी में रख छोड़ा
दहलीज का मान बढ़ाया
सबको रिश्तों में जोड़ा
सबकी खुशियांँ चुनी
अपनी खुशियों को छोड़ा
खुद गीले में सोई
सुखा बच्चों के लिए छोड़ा
सबके सुख के लिए
अपने वजूद को निचोड़ा
जब सपने याद आते
बंद तिजोरी को खोला
देखा, सहलाया
नम आँखों को पोंछा
देकर सबको सम्मान
खुद अपमान बटोरा
सब छोड़कर भी
चेहरे की मुस्कान को न छोड़ा
दी बार-बार अग्नि परीक्षा
पर नारी होने का गौरव
अपना अभिमान न छोड़ा
क्योंकि नारी ही नारायणी है
नारी से ही हर दहलीज की शोभा
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Thursday, February 7, 2019

चुभती नजर

यह चुभती-सी नजर
भेदती हैं तन को
करती छलनी मन को
कुछ टटोलती-सी
हर नारी के देह को
एक अजीब-सा भाव
यह चुभती-सी नज़रें
आत्मा को घायल करती
हर गली हर चौराहे पर
चेहरे पर कुटिल मुस्कान
यह चुभती-सी नजरें
व्यथित करती मन
नजरंदाज कर देते सब
इनके बेढंग रवैए को
इसलिए ले बुलंद
हौसलें अपने
यह करते हुड़दंग हैं
मासूमों की ज़िंदगी
से खेल जाते
कर देते उनकी
अस्मत को तार-तार
खुलेआम धज्जियां उड़ाते
हर नियम हर कानून की
कल भी यही था
आज भी वही ढंग है
कमी समाज की सोच की
और इनके संस्कारों की
ना हीं इनके कुकर्मों पर
किसी की नज़र है
और ना ही इन्हें
किसी का रहता डर है
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Wednesday, February 6, 2019

मन की पतंग

मन एक पतंग
आशा की डोर बंधी
ख्वाहिशों को
साथ लेकर
मंज़िल की ओर उड़ी
चाह है गगन छुए
हवाएं रुख़ बदलती
विचारों के धागों में
जाकर कहीं उलझती
पर फिर भी
हौसला न छोड़ती
लहराती,
डूबती-उतरती
मजबूत होती
आशा की डोर
विचारों के बादलों से
जीतने की होड़ है
ज़िंदगी की
हलचलों पर
नहीं चले किसी का जोर
मजबूत हो गर
आशा की डोर
रुख़ पतंग का मोड़ दे
हवा चले जिस ओर
***अनुराधा चौहान***

Sunday, February 3, 2019

सबसे बड़ी दौलत

कागज के टुकड़ों के लिए
दो इंसानों में बहस छिड़ी
मोहब्बत का मोल नहीं
दौलत ही इस दुनियाँ में बड़ी
सुनकर उनकी बकवास
लोगों को आ रहा था मज़ा
बढ़ रहा थी भीड़ बड़ी
निकल नहीं रहा नतीजा
एक बुजुर्ग ने आकर बोला
क्यों करते हो झमेला
तुम मोहब्बत बांटो
और तुम पैसा बांटो
जिसके पास जमा हो
इंसानों की भीड़
वहीं आदमी इस दुनियाँ में
सबसे ज्यादा अमीर
सुन कर बुजुर्ग की बातें
लगे दोनों किस्मत आजमाने
कागज के नोटों को जिसने बांटा
उसके पास लगा इंसानों का मेला
मोहब्बत बांटने वाला इंसान
रह गया बिल्कुल अकेला
कागज के टुकड़ों की है
लोगों यह दुनियाँ दीवानी
प्यार, अपनेपन की भाषा
कहाँ किसको समझ है आनी
कागज के टुकड़ों को लिए ही
चारों और हमेशा जंग है छिड़ती
राजनीति हो या आम ज़िंदगी
इंसानियत ही हरदम मरती
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना ✍
चित्र गूगल से साभार

Saturday, February 2, 2019

जीवन का दस्तूर

जब मन उदास होता है
तब सोचता कुछ करता कुछ है
हम कहना कुछ चाहते हैं
पर कहने कुछ लगते हैं
ऐसा तब होता है
जब कोई अपना हमें
छोड़कर जाने लगता है
हम रोकना चाहते हैं
पर रोक नहीं पाते हैं
उस समय खुद को
बड़ा ही बेबस पाते हैं
किस्मत के आगे हम
मजबूर नजर आते हैं
तब दिल का दर्द
आँसू बन बह निकलता है
शब्द अंदर ही अंदर
 दम तोड़ जाते हैं
संसार बेगाना-सा 
लगने लगता है
पर फिर भी हर ग़म
 पीकर जीना पड़ता है
अपनों के लिए दर्द में भी 
हँसना पड़ता है
यही जीवन का दस्तूर है
जिसके आगे सब मजबूर हैं
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार