कैसा हवाओं में
जहर-सा घुला है
मौसम भी अब
सहमा हुआ है
सूना है गुलशन
मासूम किलकारियों से
गुम हो रही हँसी
मासूम परियों की
अब दिखे उज़ड़ी-सी
सारी गलियाँ
गुलशन में नहीं
खिलती अब कलियाँ
असमय ही टूट कर
बिखर जाती हैं
कलियाँ जो अभी
फूल भी न बनी थी
कुचल देते उनके
मासूम सपनों को
अपनी घृणित
मानसिकता के चलते
धूल में मिल गए
जो देखे थे
सुंदर सपने
शोषित हुआ बचपन
जिनसे उनमें
कुछ अपने थे
टूटा दिल
असमय तन्हाई
जीवन में आई
मिट गई कोमलता
बचपन की
मासूमियत को
कुचल गई
हाय बेटियों की
यह कैसी नियति
***अनुराधा चौहान***
जहर-सा घुला है
मौसम भी अब
सहमा हुआ है
सूना है गुलशन
मासूम किलकारियों से
गुम हो रही हँसी
मासूम परियों की
अब दिखे उज़ड़ी-सी
सारी गलियाँ
गुलशन में नहीं
खिलती अब कलियाँ
असमय ही टूट कर
बिखर जाती हैं
कलियाँ जो अभी
फूल भी न बनी थी
कुचल देते उनके
मासूम सपनों को
अपनी घृणित
मानसिकता के चलते
धूल में मिल गए
जो देखे थे
सुंदर सपने
शोषित हुआ बचपन
जिनसे उनमें
कुछ अपने थे
टूटा दिल
असमय तन्हाई
जीवन में आई
मिट गई कोमलता
बचपन की
मासूमियत को
कुचल गई
हाय बेटियों की
यह कैसी नियति
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
Waah...bahut shandar rachna
ReplyDeleteसहृदय आभार नीतू जी
Deleteबहुत सुन्दर सखी
ReplyDeleteसादर
सहृदय आभार सखी
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