बसंत की बहार हूँ
फागुन की धूप हूँ
मधुमास का प्यार
और होली का रंग हूँ
आकाश का मौन हूँ
पंछियों का कलरव हूँ
लय बद्ध गीत हूँ
हवा का झोंकें में
हवा का झोंकें में
जीवन की सरगम हूँ
फागुन बसंत मै
रंगों से सराबोर हूँ
भोर के आँगन में
बिखरी हुई धूप हूँ
आँखों में लगे काजल-सी
गहरी काली रात हूँ
बादलों के आँगन में
तारों की झिलमिलाहट हूँ
समंदर की लहरों
का छुपा हुआ क्रौध हूँ
चाँद की मैं चाँदनी
मैं ही ओस की बूँद हूँ
पतझड़ का सूनापन
बरखा की बहार हूँ
मैं प्रकृति का अद्भुत
अनुपम सौंदर्य हूँ
अनुपम सौंदर्य हूँ
धरती हूँ आकाश हूँ
हवा मैं पानी मैं
मुझसे ही ज़िंदगी है
हाँ मैं सृष्टि हूँ
सहेज लो समेट लो
मुझको सँवार लो
बिखर गया रूप तो
मैं ही प्रलय हूँ
***अनुराधा चौहान***
मैं ही प्रलय हूँ
***अनुराधा चौहान***
हाँ मैं सृष्टि हूँ
ReplyDeleteसहेज लो समेट लो
मुझको संवार लो
बिखर गया रूप तो
मैं ही प्रलय हूँ
बहुत बहुत बहुत सुंदर रचना ,सच अब सृस्टि प्रलय का रूप दिखा ही रही हैं ,स्नेह सखी
बहुत खूब..... लाजवाब आदरणीया
ReplyDeleteबेहद आभार आदरणीय
Deleteवाह वाह बहुत खूबसूरत रचना सखी मै ही प्रलय हूं ।
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी
Deleteचाँद की मैं चाँदनी
ReplyDeleteमैं ही ओस की बूंद हूँ..., वाह !!!
अत्यंत सुन्दर !!
धन्यवाद मीना जी
Deleteनारी हर रूप में हर शै में है जीवन बन कर ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत खूब..... लाजवाब
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteबेहतरीन सृजन प्रिय सखी
ReplyDeleteसादर
सहृदय आभार सखी
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