Saturday, March 9, 2019

पहचान

चूड़ी बिंदिया कुमकुम पायल
नारी के जीवन श्रृंँगार बना
जिसकी खातिर हमेशा नारी ने
अपने सपनों को बलिदान दिया
जकड़ी रही हरदम वो
रिश्ते-नाते की जंजीरों में
पर झुकी नहीं टूटी नहीं
डटकर चुनौतियों से लड़ती रही
रीति-रिवाज की तोड़ बेड़ियाँ
ज्यों ही उसने दहलीज लांघी
अपने बुलंद हौसले से जल्दी
दुनियाँ में अपनी पहचान बना ली
क्या धरती क्या अंबर
वो अंतरिक्ष में भी जा पहूंँची
गृहकार्य हो या रणभूमि
नारी शक्ति की जय गूंजी
नहीं डरती आज की नारी
वो तो मिराज विमान उड़ा आई
दुश्मन के घर में घुसकर
आतंकियों को मार गिरा आई
नारी ने अपनी पहचान बनाई 
आज की नारी सब पर भारी
वो अब किसी से नहीं डरने वाली
वो अगर जन्मदात्री है अन्नपूर्णा है
तो दुर्गा है काली कल्याणी है
***अनुराधा चौहान***

9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/03/112.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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  2. नारी युग की पहचान है ...
    शश्रृष्टि नहीं जो नारी नहीं ... जीवन दाई है शक्ति है प्रकाश है ...

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  3. वाह !!बहुत सुंदर रचना ,सखी

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  4. बेहतरीन रचना सखी
    सादर

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  5. बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी सृजन अनुराधा जी।

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    1. हार्दिक आभार श्वेता जी

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