(13)
उपवन
उजड़ा उपवन देख के,मानव हुआ निराश।
अपने हाथों से किया,उसने आज विनाश।
उसने आज विनाश,यही वह समझ न पाया।
करता बंटाधार,मिटा तरुवर की छाया।
कहती अनु यह देख,धरा पर मौसम बिगड़ा।
सोचे अब क्यों आज,हरित जो उपवन उजड़ा।
(14)
जीवन
दुविधा जीवन में छुपी,छीन रही आराम।
कैसे चिंता से बचें,करते हैं सब काम।
करते हैैं सब काम,कभी आराम न पाते।
भूले दिन औ रात,रहे मन को भटकाते।
कहती अनु सुन बात,सभी को मिलती सुविधा।
खुशियाँ मिले अपार,फिर नहीं रहती दुविधा।
(15)
कविता
कविता कहती सुन कलम,कैसा कलियुग आज।
कोयल से कागा भला,कहती कड़वे राज।
कहती कड़वे राज,कर्म सब कलुषित करते।
कलियुग रचे विधान,तभी दुख से सब डरते।
कहती अनु यह देख,क्लेश की बहती सरिता।
कलियुग छीने प्रेम,यही कहती है कविता।
(16)
ममता
सोया आँचल के तले,मिलती ममता छाँव।
पैरों के बल क्या चले,भूले अपना गाँव।
भूले अपना गाँव,कभी थे आँचल झूले।
शहरी आभा देख,बची ममता की भूले।
कहती अनु सुन बात,बचाले सुख जो खोया।
ममता देती छाँव,जगाले मन जो सोया।
(17)
बाबुल
बेटी को करके विदा,बाबुल रोए आज।
आँखों से आँसू बहें, कैसे रीति-रिवाज।
कैसे रीति-रिवाज,हुआ सूना घर अँगना।
बेटी साजन साथ,पहन के चलदी कँगना।
कहती अनु दुख देख,दुखी हो दादी लेटी।
बाबा पोंछे नैन,चली जो घर से बेटी।
(18)
भैया
भैया की है लाडली,बाबुल की है जान।
बेटी रखती है सदा, दो-दो कुल की मान।
दो-दो कुल की मान,सदा सम्मान बढ़ाया।
ऊँचा करके नाम,जहाँ में नाम कमाया।
कहती अनु यह देख, झूमते बाबुल मैया।
बेटी है अनमोल, खुशी से कहते भैया।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.12.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3561 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुंदर सृजन सखी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteबेहतरीन कुंडलियां
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
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