कल्पना ये कल्पना है,
आपके बिन सब अधूरी।
शब्द जालों में उलझती,
बनी नहीं कविता पूरी।।
मौन रहकर सोचता मन,
आग यह कैसी लगी है।
हर तरफ उठता धुआँ है,
स्वप्न चिंगारी लगी है।
स्वप्न चिंगारी लगी है।
ढूँढ़ते अब राख में हम ,
सुलगे हुए स्वप्न सिंदूरी
शब्द जालों में उलझती,
बनी नहीं कविता पूरी।।
कल्पना ये कल्पना है,
आपके बिन सब अधूरी।
शब्द जालों में उलझती,
बनी नहीं कविता पूरी।।
छोड़ के जिन रास्तों को,
यह कदम आगे बढ़े थे।
लौट आना हुआ मुश्किल,
प्राण संकट में पड़े थे।
अब वजह मिलती नहीं है,
ज़िंदगी रह गई अधूरी।
शब्द जालों में उलझती,
बनी नहीं कविता पूरी।।
कल्पना ये कल्पना है,
आपके बिन सब अधूरी।
शब्द जालों में उलझती,
बनी नहीं कविता पूरी।।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
कल्पना का अपना ही रंग होता है कविता उसके बिना अधूरी है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 28 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार यशोदा जी।
Deleteकल्पना ये कल्पना है,
ReplyDeleteआपके बिन सब अधूरी।
शब्द जालों में उलझती,
बनी नहीं कविता पूरी।।
.........सुंदर रचना। शुभकामनाएं ।
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28-02-2020) को धर्म -मज़हब का मरम (चर्चाअंक -3625 ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
आँचल पाण्डेय
हार्दिक बधाई आदरणीया
Deleteढूँढ़ते अब राख में हम ,
ReplyDeleteसुलगे हुए स्वप्न सिंदूरी
शब्द जालों में उलझती,
बनी नहीं कविता पूरी।।
वाह!!!
लाजवाब नवगीत...
बहुत सुंदर कविता।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteवाह!सखी ,खूबसूरत सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteकल्पना और कविता की ये आंखमिचोली और दोनों का चोली दामन की तरह के संग को आपने बखूबी बयान किया है अनुराधा जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deletebahut badhiya likhati hai aap . Anuradha chauhan
ReplyDeleteशब्द जालों में उलझती,
ReplyDeleteबनी नहीं कविता पूरी।।
वाह!!!
लाजवाब नवगीत...
वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग :)
शब्दों की मुस्कराहट पर आपका स्वागत है
बहुत सुन्दर सृजन
ReplyDeleteशब्द जालों में उलझती
बनी नहीं कविता पूरी
लाजवाब 👌👌👌👌
हार्दिक आभार पूजा
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