दिल की नैया क्यों खाली है।
सहसा ही जब तंद्रा टूटी,
लगा रैन होने वाली है।
ढलते-ढलते साँझ चली जब ,
कहती मन उजियारा करले।
उड़ने चला पखेरू बनकर ,
मन को अपने काबू करले।
पंछी उड़ते कलरव करते,
साँझ घनी होने वाली है।
भावों के अथाह सागर में,
दिल की नैया क्यों खाली है।
सहसा ही जब तंद्रा टूटी,
लगा रैन होने वाली है।
भावों के अथाह सागर में,
दिल की नैया क्यों खाली है।
सहसा ही जब तंद्रा टूटी,
लगा रैन होने वाली है।
पल-पल बीत रहा है जीवन,
कब अंत घड़ी आ द्वार खड़ी।
जब अपने सपनों से निकले,
तो खुशियाँ आकर पास खड़ी।
कह रही अब समय की धारा,
भोर नयी होने वाली है।
भावों के अथाह सागर में,
दिल की नैया क्यों खाली है।
सहसा ही जब तंद्रा टूटी,
लगा रैन होने वाली है।
भावों के अथाह सागर में,
दिल की नैया क्यों खाली है।
सहसा ही जब तंद्रा टूटी,
लगा रैन होने वाली है।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
हार्दिक आभार यशोदा जी
ReplyDeleteसहज, सरल , सुन्दर रचना !
ReplyDeleteवाह सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteभावों के अथाह सागर में दिल की नैया क्यों खाली है..वाह अप्रतिम सृजन आदरणीया 👌👌👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार पूजा 🌹
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