कोई धुन बनाऊं
या गीत कोई गाऊं
पर सुकून के पल
कहां से लाऊं
कोई कविता लिखूं
या कोई गजल
मन बैचेन रहे हरपल
रहूं धरती पर
देखूं आसमान
पर शांति के पल
नहीं आसपास
दिखावे के दंभ में
डूबा संसार
अपनों के लिए अपनों का
गुम होता प्यार
मोबाइल से चलते
अब सारे रिश्ते
पास होकर नहीं
रहते पास अपने
हकीकत में दुनिया
सिर्फ अपने में ही खोई
फसा मोबाइल में बेचारा मन
लगा जीवन में दीमक बन
सिमट रहें हैं सबके मन
कैसे कोई धुन बने सरगम
***अनुराधा चौहान***
या गीत कोई गाऊं
पर सुकून के पल
कहां से लाऊं
कोई कविता लिखूं
या कोई गजल
मन बैचेन रहे हरपल
रहूं धरती पर
देखूं आसमान
पर शांति के पल
नहीं आसपास
दिखावे के दंभ में
डूबा संसार
अपनों के लिए अपनों का
गुम होता प्यार
मोबाइल से चलते
अब सारे रिश्ते
पास होकर नहीं
रहते पास अपने
हकीकत में दुनिया
सिर्फ अपने में ही खोई
फसा मोबाइल में बेचारा मन
लगा जीवन में दीमक बन
सिमट रहें हैं सबके मन
कैसे कोई धुन बने सरगम
***अनुराधा चौहान***
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 14 अक्टूबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार यशोदा जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए
Deleteमन को सुकून सा पहुँचाती सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteधन्यवाद अंकित जी
Deleteवाहः
ReplyDeleteबहुत उम्दा
धन्यवाद लोकेश जी
Deleteबेहतरीन रचना सखी 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteदिखावे के दंभ में
ReplyDeleteडूबा संसार
अपनों के लिए अपनों का
गुम होता प्यार
सुंदर रचना, सचमुच दिखावा हर संबधों पर भारी हो चला है
बहुत बहुत आभार आदरणीय आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
Deleteअनुराधा जी. इस मशीन-युग और तकनीकी प्रगति का एक उजला पहलू भी है. अपनी यह व्यथा आप इन्टरनेट के माध्यम से हम तक पहुंचा रही हैं. आप सुकून के साथ कोई धुन, कोई सरगम बनाइए और इन्टरनेट के माध्यम से तुरंत हम तक पहुंचाइए और फ़ौरन उस पर हमारी तरफ़ से दाद भी पाइए.
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteबढ़िया।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteसमसामयिक सटीक चिंतन...संचार क्रांति हम इंसानों की सहूलियत के लिए है पर हम इसमें अपना अस्तित्व ही गुम कर रहे है....सार्थक चिंतन बहुत अच्छी रचना अनुराधा जी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार श्वेता जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
Deleteसही कहा आपने सखी सुंदर सटीक, इन गेजेट्स के बहुत फायदे हैं पर इन निर्जीव व्यवस्थाओं ने सजीव मानवीय संवेदनाओं को बिल्कुल निर्जीव कर दिया, खोखला और ऊपरी दिखा।
ReplyDeleteयथार्थ दर्शन करवाती सार्थक रचना ।
धन्यवाद सखी आपकी सुंदर और सार्थक प्रतिक्रिया हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाती है
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