Monday, January 14, 2019

पत्थरों के शहर में

पत्थरों के शहर में
ज़ज्बात बदल गए
मिट गए आंगन
लोगों के हालात बदल गए
हवाओं को रोकने लगी
यह ऊंचीअट्टालिकाएं
सांप सी फैली सड़कों ने
डसा मानव की खुशियों को आज
हवाओं में जहर घोल रही 
सड़कों पर दौड़ती गाड़ियां
बीमारी को जन्म देती
प्रदूषण की बढ़ती मात्रा
शहर की जिंदगी ने
दिए जितने ऐशो-आराम
बदले में हमसे छीनी
सुकून की सांसें है
खान-पान का स्वरूप
भी बिगड़ा हुआ है
रंग, और रसायनों में
लपेटा शहर का खाना है
पर्यावरण को स्वच्छ बनाते
 पेड़ निरंतर कटते जाते
नदी नाले गायब करके
उन पर बंगलें बनते जाते
शहरों की मशीनी जिंदगी
में इंसान मशीन बन गया
स्वच्छ हवा-पानी बिन
बीमारी का पुतला बन गया
अच्छी शिक्षा और रोजगार
भी देता हमें शहर है
अराजकता और गुंडागर्दी का
भी दिन-प्रतिदिन बढ़ता कहर है
***अनुराधा चौहान***

12 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 14/01/2019 की बुलेटिन, " अंग्रेजी के "C" से हुआ सिरदर्द - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. बहुत बहुत आभार शिवम् जी

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  2. पत्थरों के शहर में जज्बात बदल गए हैं । बेहतरीन समसामयिक रचना ।शुभकामनाएं आदरणीय अनुराधा जी।

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  3. पत्थरों के शहर में
    ज़ज्बात बदल गए
    मिट गए आंगन
    लोगों के हालात बदल गए. ...बेहतरीन रचना 👌

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  4. अनुुुुराधा जी, आपने तो सच्‍चाई हूबहू उतार कर रख दी...

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    1. बहुत बहुत आभार अलकनंदा जी

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  5. लोगों के हालात बदल गए

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ३ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. हार्दिक आभार श्वेता जी

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  7. बेहतरीन रचना सखी ,सादर

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  8. सच है सखी पत्थरों के शहरों में जज्बात भी पथरिले हो गये और इसी स्वार्थ में हम स्वंय को और अपनी आगत पिढ़ियों के लिये बस समस्या और भयानक परिणाम बटोर रहे हैं।
    बहुत सार्थक सृजन।

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