Tuesday, May 26, 2020

राज नये गहरे-गहरे

भावों के पट खोल रहे हैं
राज नये गहरे-गहरे।
अंतर्मन में जीवन के कुछ
यादों के पल आ ठहरे।

धूप खिली है सोंधी-सोंधी
भीतर मन के अँधियारा।
पुरवाई छूकर के कहती
मौसम आया है प्यारा।
आज हटा दो इन आँखों से
शंकाओं के सब पहरे।
भावों के पट खोल रहे हैं
राज नये गहरे गहरे।

सागर-सा मन डोल रहा है
भाव डिगे लहरों जैसे।
सूने तट के आज उकेरी
तेरी छवि जाने कैसे।
बोल घरौंदा नित कुछ कहता
स्वप्न रात ठहरे ठहरे।
भावों के पट खोल रहे हैं
राज नये गहरे गहरे।

अँधेरे से डर नहीं जाना
साँझ ढले सूरज बोला।
रैन ढले ही भोर सुहानी
आशा का भरती झोला।
पुष्प खिलेंगे मन बगिया में
सुंदर महकते सुनहरे।
भावों के पट खोल रहे हैं
राज नये गहरे गहरे।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से

12 comments:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 28 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  2. वाह! आशा की लयात्मक तान बिखेरती सुन्दर कविता!

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  3. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  4. अँधेरे से डर नहीं जाना
    साँझ ढले सूरज बोला।
    रैन ढले ही भोर सुहानी
    आशा का भरती झोला।
    पुष्प खिलेंगे मन बगिया में
    बहुत सुंदर सखी आशा का संचार करता सुंदर नव गीत।

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  5. वाह!सखी ,सुंदर सृजन ।

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  6. हार्दिक आभार सखी

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  7. आज हटा दो इन आँखों से
    शंकाओं के सब पहरे।
    भावों के पट खोल रहे हैं
    राज नये गहरे गहरे।
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर लाजवाब नवगीत ।

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