Thursday, May 28, 2020

बूँद-बूँद जीवन

बूँद-बूँद जब जल की गिरती
घड़ा एक नित भरता‌।
नाम गूँजता जग में उसका
कारज जग हित करता।

गले लगाना है अपनों को
उचित नहीं ये दंगा।
पापों को हरती रहती है
शीतल जल से गंगा।
वीरों की ये पावन धरती
थर-थर है शत्रु डरता।
बूँद-बूँद जब जल की गिरती
घड़ा एक नित भरता‌।

श्वेत बहे माथे से जिसके
धन की कीमत जानी।
चोरी-चुपके छीना-झपटी
आलस की मनमानी।
महल सदा अमीरों के लिए
श्रमिक ही गढ़ा करता।
बूँद-बूँद जब जल की गिरती
घड़ा एक नित भरता‌।

पुष्प मंड़राती मधु मक्खी
बूँद-बूँद रस को पीती।
शहद मधुर बनाने के लिए
नित मरती औ जीती।
शौर्य बड़े साहस के कारज
बीज एक लघु करता।
बूँद-बूँद जब जल की गिरती
घड़ा एक नित भरता‌।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

12 comments:

  1. बूँद-बूँद जब जल की गिरती...बहुत सुंदर सार्थक संदेश देती रचना।
    नवगीत में शब्दों का अवगुठंन बहुत सुंदर है अनुराधा जी।

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    1. हार्दिक आभार श्वेता जी

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  2. बहुत बहुत खूबसूरत गीत अनु जी👌👌👌👌💐💐

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना

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  4. बहुत सुन्दर रचना है ... नव गीत ... नवीन शब्दों के साथ रचा ...

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  5. बहुत सुन्दर और प्रेरक संदेश से सजा नवगीत ।

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  6. सादर नमस्कार,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार
    (12-06-2020) को
    "सँभल सँभल के’ बहुत पाँव धर रहा हूँ मैं" (चर्चा अंक-3730)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

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  7. बहुत सुंदर रचना हे

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  8. सुन्दर भाव लिये सुन्दर कविता

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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