ज़िंदगी कब किसे
किस घड़ी धोखा दे जाए
इंसान को पता नहीं चलता
कब रिश्तों की माला से
कोई मनका टूटकर बिखर जाए
मानव बेबस होकर
बस खड़ा देखता रह जाए
ज़िद को जीतने का जुनून
खुशियों को बांटने का हुनर
रिश्तों को सहेजने तक
सब कुछ मानव के बस में है
अगर कुछ बस में नहीं है
तो परम सत्य मृत्यु को रोक पाना
चाँद तारे सूरज धरती अम्बर पानी
सब थे हैं और रहेंगे
जीवन के आने-जाने का क्रम भी
यूँ हीं चलता रहा है और रहेगा
अपनों से मिलने से लेकर
उनसे बिछड़ने की पीड़ा
हर किसी को जीवन में
सहनी पड़ती है और
यही इस जीवन का परम सत्य है
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार