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Friday, October 22, 2021

मंगल बेला


 करवाचौथ

मेहंदी रच के मुस्काती
बिंदिया माथे पर दमके।
कँगना बोले हाथों का फिर 
कुमकुम माथे शुभ चमके।

ढूँढ रहे कजरारे नयना
चंदा छुपकर मुस्काए।
लहराती चूनर जब सजनी
अम्बर का मन हर्षाए।
छनक रही पायल पैरों में 
धूम मचाती है जमके।
कँगना बोले……

वेणी बन झूले बालों में
पुष्प मोगरा भी महके।
देख समय की चंचलता को
पुरवा का मन भी चहके।
होंठों पर की लाली सजती
तार छेड़ती हर मन के।
कँगना बोले……

छलनी दीपक चढ़के बैठा
रूप सजाए मनभावन।
आस गगन का आँगन घूमे
आज दिवस सबसे पावन।
बदली पीछे हँसता चंदा
अश्रु हर्ष के जब छलके।
कँगना बोले……

चूड़ी खुश हो बोल उठी फिर
मंगल बेला है आई।
करवा हाथों में इठलाया
झूम रही है पुरवाई।
अर्घ्य चढ़ाने आतुर होती
सभी सुहागन बन-ठन के।
कँगना बोले.....

*अनुराधा चौहान'सुधी'*

Tuesday, October 12, 2021

विधाता का लेख


कर्म भूलता फिरता मानव
झूठ किए है सिर धारण
सत्य राह से विमुख हुआ तो
क्रोध बना है संहारण।

लेख विधाता का है पक्का
जो बोया है वो पाया।
सीख बुराई मन में पाले
सुख सारे ही खो आया।
चाल धर्म से अलग हुई तो
ज्ञान हुआ मन से हारण।
कर्म भूलता...

सहनशीलता दान धर्म से
तेज कर्ण सा चमका था।
जीवन की करनी जब बिगड़ी
पाप नाश बन धमका था।
भूल गया जब राह धर्म की
शुरू हुआ जीवन मारण।
कर्म भूलता....

आज मनुज की गलती सारी
मौत बनी अब डोल रही।
अनजाने ही क्रोध सहे फिर
ज्ञान चक्षु को खोल रही।
हतप्रभ हो सब जगती बैठी
दोष आज हर ले तारण।
कर्म भूलता....

भाई भाई का बैरी बन
एक दूजे पर वार करें।
रक्त धरा पे बहे नदी सा
मन में सबने द्वेष भरे।
चक्र फँसा सब मंत्र भूलता
लगा शाप या गुरु कारण।
कर्म भूलता......
अनुराधा चौहान'सुधी' स्वरचित✍️