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Thursday, April 30, 2020

प्रकृति की मनमानी

प्रकृति करे अब मनमानी,
जीवन रोता रोना है।
ज़िंदगी सबका लील रहा,
जग फैला कोरोना है।

वन विहीन किया धरती को,
नदियों के जल को मैला।
पलटवार अब करे प्रकृति,
कर्मो का ये है खेला।
त्राहि-त्राहि मची हर ओर,
सुखी नहीं कोई कोना है
ज़िंदगी सबका लील रहा,
जग फैला कोरोना है।

दबे पाँव बिन आहट के,
तांडव करती मौत खड़ी।
कोई आहट सुन न सका,
टूट रही है साँस कड़ी।
थोड़ी की लापरवाही,
फिर जीवन को खोना है।
ज़िंदगी सबका लील रहा,
जग फैला कोरोना है।

बंद घरों में बैठे अब,
देखो सब लाचार हुए।
काल खड़ा दर नाच रहा,
सभी हाल बेहाल हुए।
कैसी कठिन घड़ी आई,
अब जाने क्या होना है।
ज़िंदगी सबका लील रहा,
जग फैला कोरोना है।

मजबूरों लाचारों का,
अब जीवन बेहाल हुआ।
अन्न नहीं है खाने को,
काम-काज भी बंद हुआ।
करे पलायन पैदल घर,
दूर नहीं अब रहना है।
ज़िंदगी सबका लील रहा,
जग फैला कोरोना है।

अनुराधा चौहान 'सुधी' स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, April 21, 2020

समय का पहिया

उल्टा चला समय का पहिया
जन-जीवन परेशान।
पल-पल मरता है इंसान।।

जीव-जंतु आजाद हो हुए हैं
 कैदी मानव संसार
पल-पल मरता है इंसान।।

कैसी लगी है आज बीमारी
बिखर गई है दुनिया सारी।
छुप हुए सब आज घरों में
बनी ताड़का ये महामारी।

चीन भी रोया,फ्रांस भी रोया
अमेरिका भी है बदहाल।
पल-पल मरता है इंसान।।

जो कोरोना जन्म न लेता
तो उपवन बच्चों से हँसता।
होते लाख झगड़े-टंटे
फिर भी मानव सबसे मिलता।

चीन की काली करतूतों से
बन रहा जग शमशान।
पल-पल मरता है इंसान।।

देवदूत जो आज बने हैं
उन पे सब पथराव करे हैं।
मानवता घायल हो तड़पे
और दानव संहार करे है।

मिल जाए हमें कोई शक्ति
जो करे काम तमाम।
पल-पल मरता है इंसान।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, April 14, 2020

शाप धरा का

मन में उठ रहे
विचारों को लेकर
बैठी आज झरोखे में आकर
पक्षियों की अठखेलियाँ
झूमते वृक्षों को देख
विचार प्रवाह प्रबल हुआ
मन मेरा यह सोच उठा
महामारी फैली आफत बन
मानव की करनी का फल बन
कैसा आज मजबूर हुआ
अपने घरों में कैद हुआ
दीन-हीन भूख से तड़पते
काम-काज सब ठप्प हुए
खिलखिलाई ये देख धरा
स्वतंत्र हुए मूक प्राणी
साँस ले उठी नदियाँ सारी
सागर लहराकर झूम उठा
अम्बर तारों संग झूम उठा
कचरे का अंबार हटा
धरती का आँचल साफ हुआ
जो त्रास दिया था हमने कभी 
आज प्रकृति ने 
उसका ही पलटवार किया
कर्मो का फल कोरोना बना
खड़ा शीश पे नाच रहा
कैसे मुक्त करें आज जीवन
मानव मन ये सोच रहा
काल रूप ये रोग देकर
शाप धरा का लगा भयंकर
कैसे यह विपदा टले
बाल किलकारी से सृष्टि हँसे
गलियों में मच जाए हलचल 
मानव भय मुक्त हो जी उठे
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Saturday, April 11, 2020

कैसा कलयुग आया है

सोच रही है आज धरा भी
कैसा कलयुग आया है।
कल-तक शोर मचाता मानव
कैसे अब घबराया है।

गली-गली सुनसान पड़ी हैं
किलकारी भी ताले में।
काम-काज सब बंद हो गए
दफ्तर घिरते जाले में।
करनी का फल भुगत रहे सब
जो दिया वही पाया है।
कल-तक शोर मचाता मानव
कैसे अब घबराया है।

भाईचारा भूल गए सब
अपना सुख भरपूर रहे।
मात-पिता को किया अकेला
धन के मद में चूर हुए।
आँखों में लालच का परदा
दिखती केवल माया है।
कल-तक शोर मचाता मानव
कैसे अब घबराया है।

भूल गए थे माँ का खाना,
स्वाद दिखे बस ढाबे में
भाग-दौड़ में भूले जीवन,
प्यार कहाँ झूठे दावे में।
दिखे नहीं अब ठौर कहीं भी,
पड़ी काल की छाया है।
कल-तक शोर मचाता मानव
कैसे अब घबराया है।

सोच रही है आज धरा भी
कैसा कलयुग आया है।
कल-तक शोर मचाता मानव
कैसे अब घबराया है।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार