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Tuesday, April 14, 2020

शाप धरा का

मन में उठ रहे
विचारों को लेकर
बैठी आज झरोखे में आकर
पक्षियों की अठखेलियाँ
झूमते वृक्षों को देख
विचार प्रवाह प्रबल हुआ
मन मेरा यह सोच उठा
महामारी फैली आफत बन
मानव की करनी का फल बन
कैसा आज मजबूर हुआ
अपने घरों में कैद हुआ
दीन-हीन भूख से तड़पते
काम-काज सब ठप्प हुए
खिलखिलाई ये देख धरा
स्वतंत्र हुए मूक प्राणी
साँस ले उठी नदियाँ सारी
सागर लहराकर झूम उठा
अम्बर तारों संग झूम उठा
कचरे का अंबार हटा
धरती का आँचल साफ हुआ
जो त्रास दिया था हमने कभी 
आज प्रकृति ने 
उसका ही पलटवार किया
कर्मो का फल कोरोना बना
खड़ा शीश पे नाच रहा
कैसे मुक्त करें आज जीवन
मानव मन ये सोच रहा
काल रूप ये रोग देकर
शाप धरा का लगा भयंकर
कैसे यह विपदा टले
बाल किलकारी से सृष्टि हँसे
गलियों में मच जाए हलचल 
मानव भय मुक्त हो जी उठे
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

10 comments:

  1. आज सब यही सोच रहे हैं। कट तो ये दिन भी जाएंगे ही और नया सवेरा निकल कर आएगा। सुन्दर रचना

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  2. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 16 अप्रैल 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  3. वाह!सखी ,बहुत खूब !ये दिन भी बीत जाएंगे ,नया सवेरा आएगा ..😊

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  4. समसामयिक सटीक भावाभिव्यक्ति
    वाह!!!

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  5. सटीक और सामयिक रचना ...

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  6. सामायिक विषय पर अभिनव सृजन सखी ।
    बहुत सुंदर।

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