Followers

Friday, August 24, 2018

मन की पीड़ा

जब अंतर्मन में
खुलती है
पुरानी यादों की
परतें तब मन में
एक अजीब बैचेनी
जन्म लेने लगती है
कुछ अच्छी यादें
सुकून देती
तो कुछ यादें बड़ी
दर्द भरी होती
जो सिर्फ दर्द के
एहसास जगाती
कुछ जख्म वक्त
ऐसे दे जाता
जो भरते नहीं
किसी मरहम से
एक ऐसा खालीपन
जो कम नहीं होता
किसी भीड़ में
आज रेल का सफर
याद दिला रहा
एक ऐसा सफर
जिसमें टूट कर
बिखर गए धागे राखी के
छूट गई वो कलाई
सारे रंग सारी खुशियां
दे गया सिर्फ
एक खालीपन
कभी न खत्म होने वाली
मेरे मन की पीड़ा
बहुत दर्द भरी है
तुम बिन पहली राखी
***अनुराधा चौहान***

27 comments:

  1. हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
  2. शानदार रचना ....दर्द को बखूबी जबान दी आप ने
    दिल को छू गई आप की रचना 🙏🙏🙏

    ReplyDelete
  3. यादें सहेजने के लिये । सुन्दर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

      Delete
  4. भावनाओं से गुंथी शब्दों की रेशमी डोर

    ReplyDelete
  5. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 26 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय मेरी रचना को स्थान देकर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए 🙏🙏

      Delete
  6. वक्त का बेरहम तमाचा ,दर्द से भरी रचना शब्द जैसे स्वयं बिलख रहे हैं।हिम्मत से यादों को संजोना बहन राखी का दिन ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपको रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं कुसुम जी आभार

      Delete
  7. ओह ... निशब्द करी हृदयस्पर्शी रचना

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर, बहुत मार्मिक ! बहन के बिना यह मेरी चौथी राखी है. उनका प्यार-दुलार, धमकियाँ, कान उमेठना और अंत में फ़र्मायिशी पकवान खिलाना ! अभी भी आँखों में वो दृश्य तैरते हैं. अनुराधा जी, भाई-बहन के ये रिश्ते ख़ास अल्ला मियां के यहाँ से बन के आते हैं.

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा आपने आदरणीय दुनिया का सबसे प्यारा रिश्ता होता है भाई बहन का रिश्ता आभार आपका

      Delete
  9. बहुत ही भावाधिक्य रचना... वाह

    ReplyDelete
  10. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (5 -8 -2020 ) को "एक दिन हम बेटियों के नाम" (चर्चा अंक-3784) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
  11. बहुत दर्द भरी है
    तुम बिन पहली राखी
    प्रिय अनुराधा जी, या दो शब्द पढ़कर आँखें अनायास छलक गई। भाई बहन का गर्व होते हैं। भाई का यूँ चले जान कितना दर्द दे गया, ये रचना उसकी साक्षी है। अब तो दो रखी और बीत गयी। दर्द पे समय का मरहम भी लग गया होगा पर टीस तो हमेशा बनी रहेगी। मार्मिक रचना जो विरह विग्लित मन की दास्ताँ कहते है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सही कहा कुछ दर्द ऐसे होते है जो समय के साथ कम तो होते हैं पर विशेष मौकों पर बहुत तकलीफ़ देते हैं। आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी

      Delete
  12. शब्द शब्द से दर्द रिस रहा है। ऐसा दर्द जिसकी कोई सीमा ही नहीं। राखी हर साल आनी है और जाने वाले की यादें भी....बस जाने वाला ही है जो ऐसा गया कि लौटकर नहीं आने वाला...ऐसे में अब आजीवन इस दर्द को ही समेटना है और इसी में जीना है...बहुत ही भावपूर्ण मार्मिक सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा आपने समय के साथ हम सामान्य तो जाते हैं पर ये दर्द दिल में गहरे छुपकर पीड़ा देते रहते हैं। आपकी स्नेह भरी प्रतिक्रया के लिए आपका हार्दिक आभार सखी।

      Delete
  13. आपका दर्द बहुत गहरा है सखी ! शब्द ही नहीं हैं हौसला बढ़ाने के लिए 🙏 मर्मस्पर्शी सृजन .

    ReplyDelete
  14. ओह ! अत्यंत हृदयस्पर्शी ! अपने दुःख की प्रतिध्वनि सुन पा रही हूँ आपकी रचना में अनुराधा जी ! ज़ख्म हरे हो गए !

    ReplyDelete