जब अंतर्मन में
खुलती है
पुरानी यादों की
परतें तब मन में
एक अजीब बैचेनी
जन्म लेने लगती है
कुछ अच्छी यादें
सुकून देती
तो कुछ यादें बड़ी
दर्द भरी होती
जो सिर्फ दर्द के
एहसास जगाती
कुछ जख्म वक्त
ऐसे दे जाता
जो भरते नहीं
किसी मरहम से
एक ऐसा खालीपन
जो कम नहीं होता
किसी भीड़ में
आज रेल का सफर
याद दिला रहा
एक ऐसा सफर
जिसमें टूट कर
बिखर गए धागे राखी के
छूट गई वो कलाई
सारे रंग सारी खुशियां
दे गया सिर्फ
एक खालीपन
कभी न खत्म होने वाली
मेरे मन की पीड़ा
बहुत दर्द भरी है
तुम बिन पहली राखी
***अनुराधा चौहान***
खुलती है
पुरानी यादों की
परतें तब मन में
एक अजीब बैचेनी
जन्म लेने लगती है
कुछ अच्छी यादें
सुकून देती
तो कुछ यादें बड़ी
दर्द भरी होती
जो सिर्फ दर्द के
एहसास जगाती
कुछ जख्म वक्त
ऐसे दे जाता
जो भरते नहीं
किसी मरहम से
एक ऐसा खालीपन
जो कम नहीं होता
किसी भीड़ में
आज रेल का सफर
याद दिला रहा
एक ऐसा सफर
जिसमें टूट कर
बिखर गए धागे राखी के
छूट गई वो कलाई
सारे रंग सारी खुशियां
दे गया सिर्फ
एक खालीपन
कभी न खत्म होने वाली
मेरे मन की पीड़ा
बहुत दर्द भरी है
तुम बिन पहली राखी
***अनुराधा चौहान***
Miss you my dear brother
ReplyDeleteमैं भी
Deleteहृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी
Deleteशानदार रचना ....दर्द को बखूबी जबान दी आप ने
ReplyDeleteदिल को छू गई आप की रचना 🙏🙏🙏
यादें सहेजने के लिये । सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteभावनाओं से गुंथी शब्दों की रेशमी डोर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 26 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय मेरी रचना को स्थान देकर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए 🙏🙏
DeleteMiss u my papa
ReplyDeleteवक्त का बेरहम तमाचा ,दर्द से भरी रचना शब्द जैसे स्वयं बिलख रहे हैं।हिम्मत से यादों को संजोना बहन राखी का दिन ।
ReplyDeleteआपको रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं कुसुम जी आभार
Deleteओह ... निशब्द करी हृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteआभार आपका 🙏
Deleteबहुत सुन्दर, बहुत मार्मिक ! बहन के बिना यह मेरी चौथी राखी है. उनका प्यार-दुलार, धमकियाँ, कान उमेठना और अंत में फ़र्मायिशी पकवान खिलाना ! अभी भी आँखों में वो दृश्य तैरते हैं. अनुराधा जी, भाई-बहन के ये रिश्ते ख़ास अल्ला मियां के यहाँ से बन के आते हैं.
ReplyDeleteसही कहा आपने आदरणीय दुनिया का सबसे प्यारा रिश्ता होता है भाई बहन का रिश्ता आभार आपका
Deleteआभार आदरणीय
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (5 -8 -2020 ) को "एक दिन हम बेटियों के नाम" (चर्चा अंक-3784) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत दर्द भरी है
ReplyDeleteतुम बिन पहली राखी
प्रिय अनुराधा जी, या दो शब्द पढ़कर आँखें अनायास छलक गई। भाई बहन का गर्व होते हैं। भाई का यूँ चले जान कितना दर्द दे गया, ये रचना उसकी साक्षी है। अब तो दो रखी और बीत गयी। दर्द पे समय का मरहम भी लग गया होगा पर टीस तो हमेशा बनी रहेगी। मार्मिक रचना जो विरह विग्लित मन की दास्ताँ कहते है।
जी सही कहा कुछ दर्द ऐसे होते है जो समय के साथ कम तो होते हैं पर विशेष मौकों पर बहुत तकलीफ़ देते हैं। आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी
Deleteशब्द शब्द से दर्द रिस रहा है। ऐसा दर्द जिसकी कोई सीमा ही नहीं। राखी हर साल आनी है और जाने वाले की यादें भी....बस जाने वाला ही है जो ऐसा गया कि लौटकर नहीं आने वाला...ऐसे में अब आजीवन इस दर्द को ही समेटना है और इसी में जीना है...बहुत ही भावपूर्ण मार्मिक सृजन।
ReplyDeleteसही कहा आपने समय के साथ हम सामान्य तो जाते हैं पर ये दर्द दिल में गहरे छुपकर पीड़ा देते रहते हैं। आपकी स्नेह भरी प्रतिक्रया के लिए आपका हार्दिक आभार सखी।
Deleteआपका दर्द बहुत गहरा है सखी ! शब्द ही नहीं हैं हौसला बढ़ाने के लिए 🙏 मर्मस्पर्शी सृजन .
ReplyDeleteओह ! अत्यंत हृदयस्पर्शी ! अपने दुःख की प्रतिध्वनि सुन पा रही हूँ आपकी रचना में अनुराधा जी ! ज़ख्म हरे हो गए !
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया
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