पूनम की रात थी
काले बादलों का डेरा था
चाँद की चाँदनी पर
लगा बादलों का पहरा था
फैले घने अंधियारे में
इक अजीब बैचेनी सी
कर रही प्रिय का इंतजार
वो थी कुछ सहमी हुई
देख उसके मन की व्यथा
हवा उसे सहलाने लगी
सन्नाटे को चीरने के लिए
कोई धुन वो गुनगुनाने लगी
अंधेरे को दूर करने
जुगनू भी मंडराने लगे
देख कर यह नजारा
बदली भी सब समझ गई
कर चाँद को आजाद
कुछ दूर वो सरक गई
छिटक चाँद से चाँदनी
धरा को रोशन कर गई
रोशनी में देख किसी साये को
वो जाकर उससे लिपट गई
देख पूनम के चाँद को
वो भी मुस्काने लगी
पूनम की यह रात
पिया मन भानें लगी
***अनुराधा चौहान***
काले बादलों का डेरा था
चाँद की चाँदनी पर
लगा बादलों का पहरा था
फैले घने अंधियारे में
इक अजीब बैचेनी सी
कर रही प्रिय का इंतजार
वो थी कुछ सहमी हुई
देख उसके मन की व्यथा
हवा उसे सहलाने लगी
सन्नाटे को चीरने के लिए
कोई धुन वो गुनगुनाने लगी
अंधेरे को दूर करने
जुगनू भी मंडराने लगे
देख कर यह नजारा
बदली भी सब समझ गई
कर चाँद को आजाद
कुछ दूर वो सरक गई
छिटक चाँद से चाँदनी
धरा को रोशन कर गई
रोशनी में देख किसी साये को
वो जाकर उससे लिपट गई
देख पूनम के चाँद को
वो भी मुस्काने लगी
पूनम की यह रात
पिया मन भानें लगी
***अनुराधा चौहान***
वाह !!!आप की रचना ने पूनम के चांद को और हसीन बना दिया
ReplyDeleteधन्यवाद नीतू जी
Deletewow
Deleteधन्यवाद अमित जी
ReplyDeleteकोमल एहसासों से सुसज्जित बहुत प्यारी रचना अनुराधा जी ।
ReplyDeleteवो थी कुछ सहमी हुई
देख उसके मन की व्यथा
हवा उसे सहलाने लगी
सन्नाटे को चीरने के लिए
कोई धुन वो गुनगुनाने लगी।
अप्रतिम लावण्य।
धन्यवाद कुसुम जी
Deleteवाह बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद रेवा जी
Deletewow
ReplyDeleteहार्दिक आभार विजय जी।
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