काली घटा छाई
आई रे आई
बरखा रानी आई
बच्चों की शुरू हुई
छुपम छुपाई
मन को भाती
मासूम मस्ती
पानी में तैरती
कागज की कश्ती
नन्हें नन्हें पांवों से
करें पानी में छप छप
लगा कर सिर पर
पत्ते की छतरी
झूमे उनके संग
पवन पुरवाई
दादुर पपीहा ने
अपनी तान सुनाई
पेड़ों ने भी झूम
डालियां हिलाईं
बच्चे भी गाते
छई छप छई
देख मस्त मगन
मासूम मस्ती
याद आ गई
मुझे भी बचपन की
***अनुराधा चौहान***
आई रे आई
बरखा रानी आई
बच्चों की शुरू हुई
छुपम छुपाई
मन को भाती
मासूम मस्ती
पानी में तैरती
कागज की कश्ती
नन्हें नन्हें पांवों से
करें पानी में छप छप
लगा कर सिर पर
पत्ते की छतरी
झूमे उनके संग
पवन पुरवाई
दादुर पपीहा ने
अपनी तान सुनाई
पेड़ों ने भी झूम
डालियां हिलाईं
बच्चे भी गाते
छई छप छई
देख मस्त मगन
मासूम मस्ती
याद आ गई
मुझे भी बचपन की
***अनुराधा चौहान***
बच्चों को देख कर मन बचपन में लौट जाता है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना है ...
धन्यवाद आदरणीय 🙏
ReplyDeleteबारिश की चंचलता और मस्ती का सूंदर चित्रण ...
ReplyDeleteअति सुन्दर .
धन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteबचपन की मस्ती का बहुत ही सुंदर चित्रण किया हैं आपने, अनुराधा दी।
ReplyDeleteवाह कितनी अनुराग भरी मासूम मस्ती।
ReplyDeleteबहुत कोमल नाजुक रचना ।
अप्रतिम ।
बहुत बहुत आभार सखी
Deleteवाह क्या बात
ReplyDeleteधन्यवाद रेवा जी
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