दिल ही तो मानता नहीं
बुनता रहता ताने-बाने
कभी प्रीत भरे
कभी रीते मन के अफसाने
बिखरी किर्चे चुनता रहता
जोड़ता उन्हें बार-बार
टूटकर बिखरता रहता
दिल है कि मानता नहीं
अरमानों की पालकी में बैठ
प्रिय का इंतज़ार करता
सुनहरे स्वप्नों में खोकर
नवजीवन के सपने बुनता
उम्मीदों के पंख लगाकर
आशा की डोली में बैठकर
उड़ने को बेकरार रहता
दिल ही तो मानता नहीं
जख़्म सहकर भी हँसता
झील की गहराई में उभरा
अक्स देख किसी का
चुपके-चुपके रो देता
और फिर
रात की पालकी में सवार हो
कहीं अँधेरे में जा छुपता
दिल है कि मानता ही नहीं
***अनुराधा चौहान***
बुनता रहता ताने-बाने
कभी प्रीत भरे
कभी रीते मन के अफसाने
बिखरी किर्चे चुनता रहता
जोड़ता उन्हें बार-बार
टूटकर बिखरता रहता
दिल है कि मानता नहीं
अरमानों की पालकी में बैठ
प्रिय का इंतज़ार करता
सुनहरे स्वप्नों में खोकर
नवजीवन के सपने बुनता
उम्मीदों के पंख लगाकर
आशा की डोली में बैठकर
उड़ने को बेकरार रहता
दिल ही तो मानता नहीं
जख़्म सहकर भी हँसता
झील की गहराई में उभरा
अक्स देख किसी का
चुपके-चुपके रो देता
और फिर
रात की पालकी में सवार हो
कहीं अँधेरे में जा छुपता
दिल है कि मानता ही नहीं
***अनुराधा चौहान***
"बिखरी किर्चे चुनता रहता
ReplyDeleteजोड़ता उन्हें बार-बार" .... मर्मस्पर्शी सोचनीय रचना ....
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (12-08-2019) को "बने ये दुनिया सबसे प्यारी " (चर्चा अंक- 3425) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
हार्दिक आभार सखी
Deleteबेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति अनुराधा जी !!
ReplyDeleteये दिल जो न कहे करे , बहुत ही शानदार है | अनुराधा जी जारी रहिये शुभकामनायें
ReplyDeleteहार्दिक आभार अजय जी
Deleteहार्दिक आभार आदरणीय
ReplyDeleteदिल तो है दिल ... दिल का ऐतबार क्या कीजे ...
ReplyDeleteएक अच्छी रचना है ... दिलकश ...
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteहार्दिक आभार आदरणीय
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