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Wednesday, August 21, 2019

द्वेष की शिला

रिश्तों को बीच खड़ी
द्वेष की शिला
सपनों को कुचलती
तोड़ती नन्ही आशाएं
दिलों के बीच खड़ी
बिखेरती है जज़्बात
चुभती रहती मन में 
तोड़कर प्रेम विश्वास
इंसान को है इंसान से 
बांटकर गर्व से अड़ी
यह नफ़रत की शिला 
इंसानों के कर्म से खड़ी
दिनों दिन बढ़ रही है
दीवारें गलतफहमी की
झुकना कोई चाहे नहीं
यह बड़ी है मजबूरी
सोचता है मन यही
काश हो कुछ करिश्मा
मिटाकर दूरियाँ दिलों की
चंदन-सी महक जाएं 
रिश्तों की वादियाँ
***अनुराधा चौहान*** 

5 comments:

  1. हार्दिक आभार सखी

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  2. इंसान को है इंसान से
    बांटकर गर्व से अड़ी
    यह नफ़रत की शिला
    इंसानों के कर्म से खड़ी
    दिनों दिन बढ़ रही है।

    बहुत सुंदर सृजन सखी ।

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  3. वाह!!!
    बहुत खूब..... लाजवाब सृजन

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