रिश्तों को बीच खड़ी
द्वेष की शिला
सपनों को कुचलती
तोड़ती नन्ही आशाएं
दिलों के बीच खड़ी
बिखेरती है जज़्बात
चुभती रहती मन में
तोड़कर प्रेम विश्वास
इंसान को है इंसान से
बांटकर गर्व से अड़ी
यह नफ़रत की शिला
इंसानों के कर्म से खड़ी
दिनों दिन बढ़ रही है
दीवारें गलतफहमी की
झुकना कोई चाहे नहीं
यह बड़ी है मजबूरी
सोचता है मन यही
काश हो कुछ करिश्मा
मिटाकर दूरियाँ दिलों की
चंदन-सी महक जाएं
रिश्तों की वादियाँ
***अनुराधा चौहान***
हार्दिक आभार सखी
ReplyDeleteइंसान को है इंसान से
ReplyDeleteबांटकर गर्व से अड़ी
यह नफ़रत की शिला
इंसानों के कर्म से खड़ी
दिनों दिन बढ़ रही है।
बहुत सुंदर सृजन सखी ।
सस्नेह आभार सखी
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत खूब..... लाजवाब सृजन
हार्दिक आभार सखी
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