शर्तों के धागों में
उलझती जाती ज़िंदगी
चाहे -अनचाहे पलों को
जीने को मजबूर
बालपन से ही
टाँक दी जाती है
जीवन जीने की शर्तें
हर बेटियों के दामन में
टाँक दी जाती है
जीवन जीने की शर्तें
हर बेटियों के दामन में
ज़िंदगी की आजादी है
सिर्फ दूसरों के लिए
जो नहीं मानती
शर्तों से परे हटकर
ज़िंदगी जीती हैं आजादी से
अपने तौर-तरीके से
बहुत मुश्किल होता है
पर हार नहीं मानती
वह अलंकृत होती
कई नामों से पर फिर भी
अपना वजूद को
कायम रखकर
अपना लोहा मनवा लेती
शर्तों के दायरे में जीने वाली
घर की चारदीवारी
सिमट कर रह जाती
ज़िंदगी भर रिश्तों को
रखती सहेजकर
लड़कर-झगड़कर
तो कभी प्यार से
रिश्तों के बीच
खुशियाँ तलाशती
माँ-बहन तो कभी बेटी
बनकर शर्तें निभाती
और अपने स्वप्न दबा लेती
परिवार की खुशियों तले
***अनुराधा चौहान***
सिर्फ दूसरों के लिए
जो नहीं मानती
शर्तों से परे हटकर
ज़िंदगी जीती हैं आजादी से
अपने तौर-तरीके से
बहुत मुश्किल होता है
पर हार नहीं मानती
वह अलंकृत होती
कई नामों से पर फिर भी
अपना वजूद को
कायम रखकर
अपना लोहा मनवा लेती
शर्तों के दायरे में जीने वाली
घर की चारदीवारी
सिमट कर रह जाती
ज़िंदगी भर रिश्तों को
रखती सहेजकर
लड़कर-झगड़कर
तो कभी प्यार से
रिश्तों के बीच
खुशियाँ तलाशती
माँ-बहन तो कभी बेटी
बनकर शर्तें निभाती
और अपने स्वप्न दबा लेती
परिवार की खुशियों तले
***अनुराधा चौहान***
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29.8.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3442 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
नारी जीवन का मार्मिक सच लिखा है आपने प्रिय अनुराधा जी | शर्त की बाध्यता में बंधी नारी गर्त में उतरती अपने सपनों से दूर चली जाती है | सार्थक रचना |
ReplyDeleteहार्दिक आभार प्रिय सखी
Deleteनारी ही जाने नारी मन...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
धन्यवाद आदरणीय
Deleteनारी जीवन का मार्मिक सच
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी
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