सुनहरे अश्वो के रथ पर सवार
आए भास्कर सुनहरी रश्मियों के साथ
कलियों ने उतारा ओस का घूँघट
अंगड़ाई ले इठलाती फूल बन मुस्काई
सूर्य रश्मियों ने जीवन को छुआ
प्रकृति का खिलखिलाया हर कोना
जीवन की सुगबुगाहट तेज हुई
ज़िंदगी अपनी मंज़िल की ओर दौड़ पड़ी
अंशुमाली धीरे-धीरे बीच अंबर पे आया
खिली-खिली धूप ने जग को नहलाया
प्रकृति खुलकर मुस्कुराने लगी
लो सांझ भी अब पास आने लगी
भानु समेटने लगे अपना बसेरा
रश्मियों ने समेट लिया आँचल अपना
फिर आएंगे भानु लेकर नयी भोर
चिड़ियों का बंद हुआ चहकने का शोर
सांझ के आते ही दे गए फिर से अंधेरा
कल भास्कर के साथ आएगा नया सबेरा
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुंदर काव्यात्मक, अलंकारों से सुसज्जित रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत सुंदर रचना सखी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार ऋतु जी
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-08-2019) को " मुझको ही ढूँढा करोगे " (चर्चा अंक- 3424) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
हार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसांझ के आते ही दे गए फिर से अंधेरा
कल भास्कर के साथ आएगा नया सबेरा
वाह!!!
हार्दिक आभार सखी
Deleteअद्भुत, अप्रतिम शब्द-विन्यास ,सहज प्रवाहित लय और भाव अति उत्तम उत्कृष्ट साहित्यिक सृजन अनुराधा जी...
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
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