बूँद-सा था तेरा प्यार
सैलाब न बन सका
वक़्त की धूप लगी
बूँद-सा ही मिट गया
दिल में बसी तस्वीर तेरी
अब चुभती हैं फाँस-सी
आहट भी गवारा नहीं मुझे
अब अतीत की याद की
कोसती हूँ उस पल को
तुम पर भरोसा कर बैठी
विश्वास टूटा तो यह जाना
यह सब मेरी गलती थी
ख्वाहिशों के जो पुल मैंने
बाँध रखे थे तेरे भरोसे
कमजोर थे वो बंधन इतने
भर-भरा के बिखर गए
बिखरती हुई ज़िंदगी की
अब तस्वीर हाथों में रह गई
कोरे कागज-सी यह ज़िंदगी
खाली किताब बनकर रह गई।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-08-2019) को "देशप्रेम का दीप जलेगा, एक समान विधान से" (चर्चा अंक- 3431) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
हार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत बहुत उम्दा हृदय स्पर्शी सृजन सखी ।
ReplyDeleteबिखरती हुई ज़िंदगी की
अब तस्वीर हाथों में रह गई।
हार्दिक आभार सखी
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विराट व्यक्तित्व नेता जी की रहस्यगाथा : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteहृदयस्पर्शी सृजन अनुराधा जी ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार मीना जी
Deleteवाह!!सखी ,बहुत सुंदर भावों से सजी ,अनुपम रचना ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteमन में उठते भावों का सजीव चित्रण ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना ...
वाह बहुत सुंदर अंहसास जगाती सरस और सराहनीय रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन...
ReplyDeleteवाह!!!