इस युग के लोगों से
प्रभू कैसी तेरी दूरी है
क्यों फेर ली आंखें हमसे
ऐसी क्या मजबूरी है
कभी द्रोपदी की एक पुकार पर
प्रभू तुम दौड़े दौड़े आए थे
आज कई द्रोपदी सिसक रहीं
प्रभू क्यों आंखें मूंदे हो
कभी सुदामा के आंसू पर
अपना सर्वस्य लुटाया था
आज कई सुदामा बेबस भूखे
प्रभू क्यों आंखें मूंदे हो
नित चक्रव्यूह रचे जा रहे
और अभिमन्यु बेमौत मरते हैं
हे अंतर्यामी सब जानकर
अब भी आंखें मूंदे हो
दुशासनों से भरी दुनिया में
भीष्म पितामह मौन है
हे गिरधारी आंखें खोलो
तुम क्यों इतने मौन हो
बोला था जब पाप बढ़ेंगे
तुम धरती पर आओगे
मिटा पाप को धरती से
नया युग लेकर आओगे
त्राहि-त्राहि करती अब नारी
धरती की फटती है छाती
रोता अंबर फाड़ कलेजा
प्रभू क्यों आंखें मूंदे हो
इस युग के लोगों से
प्रभू कैसी तेरी दूरी है
क्यों फेर ली आंखें हमसे
ऐसी क्या मजबूरी है
***अनुराधा चौहान***
प्रभू कैसी तेरी दूरी है
क्यों फेर ली आंखें हमसे
ऐसी क्या मजबूरी है
कभी द्रोपदी की एक पुकार पर
प्रभू तुम दौड़े दौड़े आए थे
आज कई द्रोपदी सिसक रहीं
प्रभू क्यों आंखें मूंदे हो
कभी सुदामा के आंसू पर
अपना सर्वस्य लुटाया था
आज कई सुदामा बेबस भूखे
प्रभू क्यों आंखें मूंदे हो
नित चक्रव्यूह रचे जा रहे
और अभिमन्यु बेमौत मरते हैं
हे अंतर्यामी सब जानकर
अब भी आंखें मूंदे हो
दुशासनों से भरी दुनिया में
भीष्म पितामह मौन है
हे गिरधारी आंखें खोलो
तुम क्यों इतने मौन हो
बोला था जब पाप बढ़ेंगे
तुम धरती पर आओगे
मिटा पाप को धरती से
नया युग लेकर आओगे
त्राहि-त्राहि करती अब नारी
धरती की फटती है छाती
रोता अंबर फाड़ कलेजा
प्रभू क्यों आंखें मूंदे हो
इस युग के लोगों से
प्रभू कैसी तेरी दूरी है
क्यों फेर ली आंखें हमसे
ऐसी क्या मजबूरी है
***अनुराधा चौहान***
सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी
DeleteSuch a great line we are Online publisher India invite all author to publish book with us
ReplyDeleteवाह वाह अति सुन्दर और माकूल प्रश्न अनुराड जी
ReplyDelete👌👌👌👌👌👌👌
जगत नियंता बने फिरे हो
करुणा सागर कहलाते हो
एक बूँद करुणा के खातिर
कितना हमें रुलाते हो !
ये ही प्रीत रही क्या कान्हा
हम रोते तू मौन खड़ा
सांची प्रीत होय तो कान्हा
तू आना दौड़ा दौड़ा !
वाह इंदिरा जी आपने तो दिल खुश कर दिया सुंदर पंक्तियां 👌👌 बहुत बहुत आभार
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद दी
Deleteनित चक्रव्यूह रचे जा रहे
ReplyDeleteऔर अभिमन्यु बेमौत मरते हैं
bahut khoob.
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteआज राक्षसी प्रवृत्ति की बेसुमार भीड़ है, प्रभु किस-किस को देखें, शायद यही सोच ऑंखें मूँद सोच में डूबे होंगे की क्या यही है मेरी
ReplyDeleteअनमोल कृति जिसको इंसान कहा जाता है!
बहुत अच्छी रचना
धन्यवाद कविता जी
Deleteशानदार रचना
ReplyDeleteधन्यवाद नीतू जी
ReplyDeleteअनुराधा दी,व्यथित मन की करुण पुकार सुन प्रभु जरूर आएंगे। मन में हैं विश्वास...
ReplyDeleteजी सही कहा आपने आभार ज्योती जी
Deleteभावों में विहलता उभर कर आई हैं इतनी मार्मिकता है पंक्तियों मे जो मन को गहरे तक छू रही है,
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ।
बहुत बहुत आभार सखी
Deleteभावपूर्ण
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब सृजन
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteसुबह होते ही जब दुनिया आबाद होती है ।
ReplyDeleteआंख खुलते ही लबों पर श्याम तेरी याद होती है ।।
फूल बन कर बिछ जाऊ तेरे चरणों मे ।
एक मात्र होंठों पे पहली ये फरियाद होती है ।।सुप्रभात💐
सुप्रभात जी आभार
Delete
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11 -8 -2020 ) को "कृष्ण तुम पर क्या लिखूं!" (चर्चा अंक 3790) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा