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Monday, August 27, 2018

सफर

आज फिर विदाई
माँ बाप के आंगन से
सहेज कर कुछ नई
अनमोल यादों को
सहेज कर कुछ
रोमांच भरी बातें
जो निकली थी
पुरानी यादों की
पोटली से
और बड़े भाई संग
बिताए पलों को याद कर
नम हो आईं आंखों से
कभी न भरने वाले
खालीपन का एहसास लिए
निकल दी फिर सफर पर
सबका प्यार समेट
बच्चों की मीठी
मनुहार लिए
जीने वही जिंदगी
अपने परिवार के साथ
जो अब मेरा हिस्सा है
मेरा जीवन है
यही जीवन चक्र है
यादों को सहेज कर
समय के साथ
जिंदगी के सफर में
आगे बढ़ते हुए
अपने कर्त्तव्य का
निर्वाह करने के लिए
***अनुराधा चौहान***


22 comments:

  1. सत्य वचन बहना

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  2. kya kahu...i m spellbound...very beautiful composition :)

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  3. मन की गहराई से निकली मन की दोहरी स्थिति का बहुत सुंदर वर्णन।
    अनुराधा जी भावात्मक रचना।

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  4. मर्म को छूती मन की बात!

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  5. मन को भूते एहसास अनुराधा जी | अपने मायके से आते मेरी भी यही स्थिति होती है | उस आंगन से हर बार विदा हो कर आना बहुत भारी पड़ता है मन पर -- पर यूँ ही चलता है जीवन का ये सफर !सस्नेह --

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  6. वाह!!! बहुत सुंदर 👌👌👌

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  7. बहुत सुंदर रचना बहना

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  8. दिल को छूती बहुत सुंदर रचना,अनुराधा दी। मायके से बिदा होते वक्त के हर नारी के मन की दुविधा को सुंदर तरीके से व्यक्त किया आपने।

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  9. दो-दो घर एक लड़की के हिस्से में ही आते हैं, जिसे वही जो अच्छे से निभाना जानती हैं
    बहुत अच्छी रचना

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  10. बहुत खूब
    बेहतरीन रचना

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