आज फिर विदाई
माँ बाप के आंगन से
सहेज कर कुछ नई
अनमोल यादों को
सहेज कर कुछ
रोमांच भरी बातें
जो निकली थी
पुरानी यादों की
पोटली से
और बड़े भाई संग
बिताए पलों को याद कर
नम हो आईं आंखों से
कभी न भरने वाले
खालीपन का एहसास लिए
निकल दी फिर सफर पर
सबका प्यार समेट
बच्चों की मीठी
मनुहार लिए
जीने वही जिंदगी
अपने परिवार के साथ
जो अब मेरा हिस्सा है
मेरा जीवन है
यही जीवन चक्र है
यादों को सहेज कर
समय के साथ
जिंदगी के सफर में
आगे बढ़ते हुए
अपने कर्त्तव्य का
निर्वाह करने के लिए
***अनुराधा चौहान***
माँ बाप के आंगन से
सहेज कर कुछ नई
अनमोल यादों को
सहेज कर कुछ
रोमांच भरी बातें
जो निकली थी
पुरानी यादों की
पोटली से
और बड़े भाई संग
बिताए पलों को याद कर
नम हो आईं आंखों से
कभी न भरने वाले
खालीपन का एहसास लिए
निकल दी फिर सफर पर
सबका प्यार समेट
बच्चों की मीठी
मनुहार लिए
जीने वही जिंदगी
अपने परिवार के साथ
जो अब मेरा हिस्सा है
मेरा जीवन है
यही जीवन चक्र है
यादों को सहेज कर
समय के साथ
जिंदगी के सफर में
आगे बढ़ते हुए
अपने कर्त्तव्य का
निर्वाह करने के लिए
***अनुराधा चौहान***
सत्य वचन बहना
ReplyDeleteधन्यवाद दी
Deletekya kahu...i m spellbound...very beautiful composition :)
ReplyDeleteमन की गहराई से निकली मन की दोहरी स्थिति का बहुत सुंदर वर्णन।
ReplyDeleteअनुराधा जी भावात्मक रचना।
धन्यवाद सखी
DeleteSaache vachan
ReplyDeleteThanks
Deleteमर्म को छूती मन की बात!
ReplyDeleteमन को भूते एहसास अनुराधा जी | अपने मायके से आते मेरी भी यही स्थिति होती है | उस आंगन से हर बार विदा हो कर आना बहुत भारी पड़ता है मन पर -- पर यूँ ही चलता है जीवन का ये सफर !सस्नेह --
ReplyDeleteधन्यवाद रेनू जी
Deleteवाह!!! बहुत सुंदर 👌👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद नीतू जी
Deleteबहुत सुंदर रचना बहना
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
Deleteदिल को छूती बहुत सुंदर रचना,अनुराधा दी। मायके से बिदा होते वक्त के हर नारी के मन की दुविधा को सुंदर तरीके से व्यक्त किया आपने।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योती जी
Deleteसुंदर अनुभूतियाँ
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteदो-दो घर एक लड़की के हिस्से में ही आते हैं, जिसे वही जो अच्छे से निभाना जानती हैं
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
धन्यवाद कविता जी
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
धन्यवाद आदरणीय 🙏
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