रेत के घरोंदों से
बिखर जाते हैं सपने मेरे
जब तुम पास होकर भी
पास नहीं होते हो
कभी आँखों ही आँखों में
समझ लेते थे
जो दिल की बातें
आज जुबां से कहूँ
फिर भी नहीं समझते
कभी हाथों में हाथ थाम कर तेरा
खुली आँखों से देखे थे जो सपने
आज आँखें बंद करूँ
तो कोई नजर नहीं आते
बीत रही है उम्र इस बेरुखी में तेरी
कब छीन ले मौत यह जिंदगी हमसे
आ दो घड़ी बैठ पहलू में मेरे
फिर से आँखों ही आँखों में
करले कुछ दिल की बातें
***अनुराधा चौहान***
वाह खूब उकेरा है बेरुखी का दर्द आंखों ने उम्दा मित्र जी।
ReplyDeleteआँखों आँखों में दिल की बात कर लें ...
ReplyDeleteप्रेम है अगर तो उससे मुलाक़ात कर में ...
बहुत भावपूर्ण लिखा है आपने ...
बहुत बहुत आभार आदरणीय आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
Deleteबहुत एवं भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी
Deleteबहुत सुन्दर, मार्मिक व संवेदनशीलता से पूर्ण रचना .
ReplyDeleteहिन्दीकुंज,हिंदी वेबसाइट/लिटरेरी वेब पत्रिका
धन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteबेरुखी ....सम्वेदनात्म्क भाव
ReplyDeleteधन्यवाद इंदिरा जी
Deleteबहुत सुन्दर रचना ....बहुत खूब 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार नीतू जी
Deleteबेरुखी के दर्द को उकेरती भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteआभार आपका 🙏
Deleteबहुत बहुत आभार श्वेता जी मेरी रचना को साझा करने के लिए 🙏
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण लिखा है आपने ...
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए 🙏
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