काश ....
कोई जरिया होता
कोई जरिया होता
तो हम भी खत लिखके
उस दुनिया में भेज देते
जहाँ तुम जा बैठे हो
उस दुनिया में भेज देते
जहाँ तुम जा बैठे हो
काश....
एक बार फिर तुमसे
कर पाते कुछ बातें
एक बार फिर तुमसे
कर पाते कुछ बातें
क्यों बीच भँवर में
साथ छोड़ा
साथ छोड़ा
लिखते उन्हें वे सारी बातें
कुछ अपनी लिखते
कुछ उनकी पढ़ते
कर लेते उस दुनिया की
ढ़ेर सारी बातें
जहाँ वो चले गए
हमारी नजरों से दूर
खत के जरिए
बताते उन्हें अपने
दिल का हाल
बताते तुम बिन
राखी सूनी है
सावन भी फीका है
माँ का आंगन सूना है
पिता कुछ कहते नहीं
पर आँखों के किनारे
नम रहते हैं
छुप-छुपकर के
आँखों से आँसू हरदम बहते हैं
पिता कुछ कहते नहीं
पर आँखों के किनारे
नम रहते हैं
छुप-छुपकर के
आँखों से आँसू हरदम बहते हैं
काश..
उस जहां में खत लिखकर
उस जहां में खत लिखकर
भेज पाते
***अनुराधा चौहान***
र्मम स्पर्श करती रचना सजह प्रवाहता मे भी कूट कूट कर दर्द भरा है सखी ।
ReplyDeleteसस्नेह।
बहुत बहुत आभार सखी
Deleteहृदयस्पर्शी रचना ।
ReplyDeleteविरह में डूबे मन की मर्मस्पर्शी पाती !!!!!!!!शब्द शब्द दर्द झलकाती !!!!!!!!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रेणू जी
Deleteनिःशब्द
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद दी
Deleteकाश ... हृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जी
Deleteबहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योती जी
Deleteवाहः
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा
धन्यवाद आदरणीय लोकेश जी
Deleteआहा ....काश ...वाह सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद रेवा जी
Deleteण्क काश और इतनी वेदना...वाह बहुत ही खूबसूरत रचना
ReplyDeleteधन्यवाद अलकनंदा जी
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