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Sunday, December 16, 2018

संस्कार


वक्त की धारा में
धूमिल होते संस्कार
नहीं दिखाई देता कहीं
पहले जैसा 
प्यार और सम्मान
रिश्तों में भी मचा रहता
आपसी द्वंद 
सब इसी कोशिश में लगे
कि हम नहीं किसी से कम
अब तो आया 
इंग्लिश का ज़माना 
हिंदी बन गई 
पुराना ज़माना
हाय,हैलो कर होता है
अब बड़ों का सम्मान
कौन चरणस्पर्श कर
रीढ़ की हड्डी 
को करे परेशान
भूल गए इस संस्कार को
बड़ों के आदर-सत्कार को
आशीर्वाद में उनसे
मिलने वाले प्यार को
अपनी सभ्यता संस्कृति का
घोंट कर गला
कौनसा संस्कार अपने
बच्चों को दोगे तुम भला
ऊपरी चकाचौंध तो कुछ
दिन रंग दिखाती है
अगर संस्कार अच्छे हैं
खूबसूरती दिन पर दिन
निखरती जाती है
इसलिए हमेशा करो बड़ों
का सम्मान क्योंकि 
उनसे मिलता है 
हमें उत्तम ज्ञान
***अनुराधा चौहान***

10 comments:

  1. सही कहा आपने अनुराधा जी ,हम अपने संस्कार खोते जा रहे है ,बहुत सुन्दर रचना ,स्नेह

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए

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  2. संस्कार देने में भलाई है ... किसी समय ख़ुद के ही काम आते हैं ...
    अच्छी रचना ...

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  3. सार्थक आदर्श लिये सुंदर रचना ।

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