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Thursday, December 20, 2018

हाय यह भूख

भूखे पेट की माया
कहीं धूप कहीं छाया
दाने-दाने को मोहताज
फिरते लिए हड्डियों का ढांचा
काम मिला तो भरता है पेट
नहीं तो भूखे कटते दिन अनेक
बेरोजगारी बनी बीमारी
जिसने छीनी खुशियां सारी
पर परेशानी का हल निकले कैसे
मंहगाई तो कमर तोड़े ऐसे
जिनके हाथों में इसका हल है
उनको जनता की फ़िक्र किधर है
सब अपनी कुर्सी के भूखे
जनता जिए या मरे भूखे
भूख,भूख, हाय यह भूख
कहीं दो रोटी की चाहत
तो कहीं दौलत की भूख
फिर भी मिटती नहीं
पता नहीं कैसी है यह भूख
***अनुराधा चौहान***

19 comments:

  1. बहुत बढ़िया रचना

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  2. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 22 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार यशोदा जी

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  3. कटु सचाई को इंगित करती रचना सखी | सचमुच अन्न की भूख से कहीं बड़ी है भौतिक वैभव; विलास की भूख |यकीन गरीब आदमी की भूख से बढ़कर संसार में कुछ भी दर्दनाक नहीं है |

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    1. बहुत बहुत आभार आपका रेनू जी

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  4. सार्थक रचना ।
    हर पीड़ा से भूख बड़ी है।

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद सखी

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  5. भूख के सच को उजागर करती सच्ची और सटीक रचना
    बधाई

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  6. कहीं दो रोटी की चाहत,तो कहीं दौलत की भूख
    फिर भी मिटती नहीं,पता नहीं कैसी है यह भूख
    सच ,ये भूख कभी नहीं मिटती जीवन सच को दर्शाती आप की ये रचना हृदयस्पर्शी है ,सादर स्नेह

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  7. फिर भी मिटती नहीं
    पता नहीं कैसी है यह भूख.... बिल्कुल सत्य वचन। बहुत सुंदर कविता।

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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  8. अनुराधा जी, गरीबी हटाना मुश्किल काम है इसलिए हमारे नेता अगर गरीब हटा देते हैं तो क्या बुरा करते हैं? जब गरीब ही नहीं रहेंगे तो गरीबी की समस्या का तो अपने-आप हल निकल आएगा. अपने हाकिमों की आलोचना करने के बजाय आप उनकी तारीफ कीजिए तो हो सकता है कि आपको 'पद्म श्री' या 'पद्म भूषण' के साथ 'ज्ञानपीठ' पुरस्कार भी मिल जाए.

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय आपकी टिप्पणी पर जरूर विचार करूंगी 🙏

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  9. सच को उजागर करती ....... सटीक रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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