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Friday, July 10, 2020

चक्रव्यूह का भेद गहरा

धूप भी चुभने लगी है
साँझ भी चुपचाप जागे।
मौन हुए इन रास्तों पे
बिखरते सपने अभागे।

समय चक्र कैसा चला है
चाँद सितारे भी चुप है।
चाँदनी झाँकें गली में
अँधेरा घनघोर घुप्प है।
व्याधियाँ हँसने लगी हैं
सो रहे दिन रात जागे।
मौन हुए इन रास्तों पे
बिखरते सपने अभागे।

मौत ताडंव आज देख
आस भी धूमिल हुई है।
होती आज मौन गलियाँ
कैसी ये चुभी सुई है।
मरी हुई मानवता के 
नींद तज अहसास जागे।
मौन हुए इन रास्तों पे
बिखरते सपने अभागे।

चक्रव्यूह-सा भेद गहरा
बीच जीवन डोलता है।
राह से कंटक मिटे सब
भाव मनके बोलता है।
मुस्कुराएँ लोग फिर से
तोड़ ये कमजोर धागे।
मौन हुए इन रास्तों पे
बिखरते सपने अभागे।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

8 comments:

  1. चक्रव्यूह-सा भेद गहरा
    बीच जीवन डोलता है।
    राह से कंटक मिटे सब
    भाव मनके बोलता है।
    वाह!! बहुत सुंदर सखी,अब इस चक्रव्यूह में दम घुट रहा, सादर नमन आपको

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  2. आ अनुराधा जी, गीत विधा में लिखी गयी सुन्दर रचना। साधुवाद !
    कृपया मेरे ब्लॉग के इस लिंक पर जाकर मेरी रचनाएँ पढ़ें और अपने विचार अवश्य दे।
    लिंक : https: marmagyanet.blogspot.com
    --ब्रजेन्द्र नाथ

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  3. बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय दी यथार्थ को इंगित करता .
    सादर

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  4. चक्रव्यूह-सा भेद गहरा
    बीच जीवन डोलता है

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  5. हार्दिक आभार सखी

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