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Sunday, July 5, 2020

आह धरा की

कटते तरुवर बढ़ती गर्मी
धरती हो रही बीमार।
क्रोधाग्नि से भरी प्रकृति
कैसे सहे अत्याचार।

हरियाली को आज मिटाकर
फल रहा कंक्रीट जंगल।
बंजर होती आज धरा फिर
करती सभी का अमंगल।
अपनी करनी से ही मानव
जीवन पे करता प्रहार 
कटते तरुवर ....


मौसम भी अब रूठा-रूठा
कहीं भूकंप कहीं बाढ़।
करनी का फल दुनिया भुगते
समस्या बनी खड़ी ताड।
आह धरा की आज लगी है,
मानव दिख रहा लाचार।
कटते तरुवर ....

आज प्रलय की आशंका ने
सबके मन को है घेरा।
 अपनी करनी कभी न बदले
हो चाहे घना अँधेरा।
मचा मौत का तांडव हर पल
हो रहा जीवन संहार।
कटते तरुवर....
***अनुराधा चौहान 'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

6 comments:

  1. सुंदर सार्थक सृजन सखी ।

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  2. मानव की क्रूरता और धरती की व्यथा का सटीक चित्रण ,समसामयिक सृजन दी,बहुत सुंदर 👏👏👏👏👏

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  3. Bhut khusurat rachanaye hai aapki
    Hal hi maine blogger join kiya hai aapse nivedan hai ki aap mere blog me aaye,mere post padhe aour mujhe sahi disha nirdesh kre
    https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1

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