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Monday, May 24, 2021

मुरझाईं फिजाएं


 

पूँछता है मौन अम्बर बोल तांडव थाप क्यों।

लीलती है मौत खुशियाँ हर गली में आज क्यों।


रौनकें फीकी हुई क्यों आरज़ू मरती दिखे।

साँस का सौदा मचाए यह रुदन का साज क्यों।


बढ़ रही मायूसियों के कौन रोके काफिले,

आज मानव आ रहा इंसानियत से बाज क्यों।


चीखती खामोशियों में गुल धुनें हैं प्यार की।

बंद कमरों में दफन हैं धड़कनों के साज क्यों।


आज मुरझाई फिजाएं झूमती गाती नहीं।

बोल दो मन की व्यथा सबसे छुपाती राज क्यों।

©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️

चित्र गूगल से साभार


9 comments:

  1. रौनकें फीकी हुई क्यों आरज़ू मरती दिखे।

    साँस का सौदा मचाए यह रुदन का साज क्यों।

    वाह बहुत ही खूबूसूरत रचना है। खूब बधाई

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25 -5-21) को "अब दया करो प्रभु सृष्टि पर" (चर्चा अंक 4076) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. कौन किससे प्रश्न पूछे, जब कहीं उत्तर नहीं हों।
    सुन्दर कविता।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  4. बढ़ रही मायूसियों के कौन रोके काफिले,

    आज मानव आ रहा इंसानियत से बाज क्यों

    समसामयिक हालातों को व्यक्त करती लाजवाब कृति।

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  5. आज के डर को शब्दों मैं उतार दिया ...
    हर बंध इंसान और इंसानियत की बात कर रहा है ....

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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