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Friday, September 7, 2018

खत लिख दो मितवा

रोज आ बैठती हूँ
इसी उम्मीद में यहां
तुमने किया था
लौट आने का वादा
दिन निकल रहे
तेरी याद में
लो यह शाम भी
ढल गई तेरे
इंतजार में
रातें कटती मेरी
तेरे ख्वाबों में
कब आओगे
खत लिख दो मितवा
करती हूं आज भी
तेरा इंतजार मितवा
तुम कैसे भूल बैठे
अपना यह वादा
बाटेंगे सुख-दुख
हम आधा-आधा
राह तकते तकते
थक गई है अंखियां
बिखर रही मेरे
ख्वाबो की लड़ियां
नहीं आओगे तो
तुम खत लिख दो
इंतजार खत्म हो
बस अब तो
जिंदगी तुम बिन
वीरान है मितवा
कब आओगे तुम
खत लिख दो मितवा
***अनुराधा चौहान***







15 comments:

  1. बहुत लाजवाब रचना 👌👌👌

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद नीतू जी

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  2. बहुत सुंदर दिलकश रचना ।

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  3. वाहः
    बहुत उम्दा

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    1. धन्यवाद आदरणीय लोकेश जी

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  4. वाह वाह। बहुत ही सरल सहज सुंदर भावप्रवण रचना। सरल लिखना बहुत कठिन है। सरल कहना बहुत कठिन है। सरलता से कहना और भी कठिन है। नमन आपको।

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय आपने सार्थक प्रतिक्रिया व्यक्त कर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए 🙏

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    1. धन्यवाद आदरणीय प्रशांत जी

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  6. Very sentimental
    मज़ा आ गया।

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    1. धन्यवाद आदरणीय जफर जी

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १० सितंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार श्वेता जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए 🙏

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  8. परदेश में बसे मनमीत से आने और आने से पहले यही बात खत के जरिए बताने की मनुहार करती सुंदर रचना ।प्रिय अनुराधा जी बहुत कोमल भाव पिरोए।हार्दिक बधाई । आपने रचना में ।

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    1. बहुत बहुत आभार रेणू जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाती है

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