सावन बीत गया
बीत रहा बसंत
पतझड़-सा हो गया
जीवन का सफ़र
समय की चाल से
मन में बसाए हसीं
लम्हों की सुनहरी याद
ढलती जाए उमरसमय की चाल से
सब कुछ बदल जाता है
वक़्त की तेज रफ्तार में
रिश्ते भी सूखे पात से
उड़ जाते बहार में
ज़िंदगी का बसंत
फिर लौटकर नहीं आता
ज़िंदगी का भी दामन
छूटता जाता है
ज़िंदगी का भी दामन
छूटता जाता है
तब यादों के ख़ज़ाने से
निकलते हैं कुछ छिपे हुए
दर्द, तड़प और तन्हाई
कुछ प्यारी-सी यादें
कुछ टूटे सपनों की किर्चें
तो कुछ अनमोल सौगातें
मस्ती भरी याद बचपन की
मनभाती अल्हड़ जवानी
बीत जाते कब यह पल
यादें रह जाती हैं बाकी
***अनुराधा चौहान***
मस्ती भरी याद बचपन की
ReplyDeleteमनभाती अल्हड़ जवानी
बीत जाते कब यह पल
यादें रह जाती हैं बाकी
लाजबाब ...,स्नेह सखी
बेहद आभार सखी
Deleteबहुत खूब......
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुंदर बस यादें रह जाती
ReplyDeleteबेहद आभार रितू जी
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
४ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सहृदय आभार श्वेता जी
Deleteयादों की महकती अनुभूतियों के साथ - ढलते जीवन की वेदना को बखूबी लिखा आपने अनुराधा जी | सस्नेह शुभकामनायें |
ReplyDeleteबेहद आभार प्रिय रेणु जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
Deleteसही कहा हर पल की यादे बाकी रह जाती हैं...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...लाजवाब...
बेहद आभार प्रिय सुधा जी
Deleteबस यादें जीवन की वेदना को बखूबी लिखा
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय संजय जी
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