रोज नयी इबारतें लिखते
रोज नया ख्व़ाब गढ़ते
सुख के पन्ने बार-बार सहेजते
पर दुःख के पन्ने पलट नहीं पाते
अनेकों तस्वीरें सहेजे
किताब जैसी है ज़िंदगी
जाने कितने पाठ पढ़ लिए
जाने कितने बाकी रह गए
ज़िंदगी की ऊहापोह में फंसे
कभी दुःख के कभी सुख के
कितने इम्तहान बाकी रह गए
पास-फेल के खेल में
फेल हुए तो अध्याय बंद
फिर पढ़ी किताब की तरह
यादें अलमारी में बंद हो जाती
पास हुए तो ज़िंदगी आगे बढ़ती
ज़िंदगी की किताब में
फिर एक नया अध्याय जोड़ती
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
वाह!!सखी ,बहुत सुंदर !
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteहार्दिक आभार सुजाता जी
Deleteहार्दिक आभार श्वेता जी
ReplyDeleteवाह !बेहतरीन सृजन सखी
ReplyDeleteसादर
सहृदय आभार सखी
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