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Thursday, March 28, 2019

अश्कों की बारिश

अश्रु नीर बन बहने लगे
विरह वेदना सही न जाए
इतने बेपरवाह तुम तो न थे
जो पल भर मेरी याद न आए

चटक-चटककर खिली थी कलियाँ
मौसम मस्त बहारों का था
मैं पतझड़-सा जीवन लेकर 
ताक रही थी सूनी गलियां

फूल पलाश के झड़ गए सारे
बीते गए दिन मधुमास के
गर्म हवाएं तन को जलाती
बैठी अकेली मैं अश्रु बहाती

शरद भी बीता बसंत भी बीता
विरह की अग्नि बरसने लगी
नयनों से अश्कों की बारिश
मैं पल-पल तेरी बाट निहारूँ

लौटकर आना देर न करना
मन का मेरे विश्वास न टूटे
नयना मेरे तेरी याद में भींगे
कहीं सब्र का मेरे बांध न टूटे
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

20 comments:

  1. वाह ....
    अश्रु नीर बन बहने लगे
    विरह वेदना सही न जाए
    इतने बेपरवाह तुम तो न थे
    जो पल भर मेरी याद न आए
    ...बेहतरीन सृजन

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  2. सब्र टूटेगा तो सैलाब तो बहेगा ...
    सुन्दर अभिव्यक्ति मनोभाव की ...

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  3. बहुत सुन्दर सखी
    सादर

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  4. संवेदना और भावनाओं से परिपूर्ण कविता।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    Replies
    1. हार्दिक आभार श्वेता जी

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  6. लौटकर आना देर न करना
    मन का मेरे विश्वास न टूटे
    नयना मेरे तेरी याद में भींगे
    कहीं सब्र का मेरे बांध न टूटे।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति मन को छूती।

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  7. फूल पलाश के झड़ गए सारे
    बीते गए दिन मधुमास के
    गर्म हवाएं तन को जलाती
    बैठी अकेली मैं अश्रु बहाती....वाह !

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  8. अनुरागी मन व्याकुलता को दर्शाती सुंदर रचना और अंतिम पंक्तियों की भावुक मनुहार के क्या कहने! _-- लौटकर आना देर ना करना-- मन का मेरे विश्वास ना टूटे--तो बहुत ही मार्मिक हैं। शुभकामनाएं प्रिय अनुराधा जी। मेरे रोज़ वाले खाते से मोबाइल से टिप्पनी नहीं हो पाती अतः इसी मेल से लिख रही हूं। स स्नेह।

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  9. बहुत सुंदर... लाजवाब रचना?

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  10. इतने बेपरवाह तुम तो न थे
    जो पल भर मेरी याद न आए
    ....मन को छूती बेहतरीन

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  11. Replies
    1. हार्दिक आभार मीना जी

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