आज़
मुद्दतों बाद खोली
यादों में बंद
रिश्तों की पोटली
रिश्तों की पोटली
धूप दिखाने रखती यहाँ वहाँ
सहेजकर
सीली यादों को
तभी खन्न से गिरी चिल्लर
एक आने,दो आने की
खट्टी-मीठी गोलियाँ मिलती
तब इनसे चौराहे पर
दो चोटी बाँधे कपड़े की गुड़िया
लिपटी
माँ की रेशमी साड़ी में
मिट्टी की गुल्लक खनक उठी
उसमें रखे पाँच आने से
कहीं से सरककर गिरा
गुलाब सूखा
तोड़ा था पड़ोसी के आँगन से
तह बना रखा वो रुमाल
जिस पर लिखा था नाम
मैंने रेशम के धागे से
जिस पर लिखा था नाम
मैंने रेशम के धागे से
इक चिट्ठी
माँ के हाथ लिखी
महकती मायके के अहसासो से
बाबूजी का फाउंटेन पेन देख
आँसू बहते आँखों से
छीना था भाई से कभी
यादों में झट से झाँक उठा
वो पुराना दो का नोट
वो पुराना दो का नोट
कह गया एक पल में
अनगिनत बातें
भाई के अहसास जगा
भाई के अहसास जगा
बस बहुत लग चुकी धूप
रख देती हूँ इन्हें सहेजकर
यह यादें ख़ामोशी से
टटोलकर मन को मेरे
यह यादें ख़ामोशी से
टटोलकर मन को मेरे
आँसू दे जाती आँखों में
मैं फिर से बंद कर रख देती
रिश्तों की पोटली को
यादों के संग
खामोशी से ताले में
मैं फिर से बंद कर रख देती
रिश्तों की पोटली को
यादों के संग
खामोशी से ताले में
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुंदर अनुराधा जी! बिलकुल सजीव चित्रण।आपकी रचना सचमुच मायके की याद बनकर रुला गयी।
ReplyDeleteरख देती हूँ इन्हें सहेजकर
ReplyDeleteयह यादें ख़ामोशी से
टटोलकर मन को मेरे
आँसू दे जाती आँखों में
मैं फिर से बंद कर रख देती
यादों को
खामोशी से ताले में।
बहुत सुंदर सखी पुरानी यादों का वातायान ही खोल दिया आपने ।
मन को छू गया सुंदर सृजन।
हम सबके मन की एक ही कहानी है। हार्दिक आभार प्रिय सखी
Deleteआज़
ReplyDeleteमुद्दतों बाद खोली
यादों की बंद पेटियाँ
धूप दिखाने रखती यहाँ वहाँ
सहेजकर
सीली यादों को
तभी खन्न से गिरी चिल्लर
एक आने,दो आने की
खट्टी-मीठी गोलियाँ मिलती
तब इनसे चौराहे पर
दो चोटी बाँधे कपड़े की गुड़िया.. बहुत ही सुन्दर सृजन सखी
यादों से भरी पोटली, सीलन का एहसास...
हार्दिक आभार सखी
Deleteअनुराधा दी,बचपन की यादें बहुत ही मधुर होती हैं। इंसान इन्हें ताउम्र भूल नहीं सकता। बहुत ही सुंदर प्रस्तूति।
ReplyDeleteवाह!!सखी ,बहुत खूब !!बचपन की यादें ..आह....भुलाए नहीं भूलती । बहुत खूबसूरती के साथ चित्रण किया है आपने ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार लोकेश जी
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पाँच लिंकों का आनन्द" के हम-क़दम के 88 वें अंक में सोमवार 16 सितंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्दचित्रण बचपन की यादों का...
ReplyDeleteपर ये क्या इन्हें खामोशी का ताला न लगाएं इतनी खूबसूरत यादों को यूँ ही साझा करते जायें ये यादें जाने कितनी सोई यादों को जगा देंगी...फिर खामोशी छोड़ गुनगुनायेंगी सभी यादें...
बहुत लाजवाब सृजन।
आँसू दे जाती आँखों में
ReplyDeleteमैं फिर से बंद कर रख देती
यादों को
खामोशी से ताले में
बहुत ही सुंदर रचना सखी ,सच यादों के पिटारे को खोलो तो आँखे नम हो ही जाती हैं।
जी हार्दिक आभार सखी 🌹
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