जो हर हाल में खुश हैं
रो-रोकर
जिए तो क्या जिए
जिए तो क्या जिए
बस दुःख की माला पहनते रहे
सब सुख
भला किसको मिला
भला किसको मिला
किसी का पेट भरा
तो
तो
कोई भूखा जगा
पहनकर रेशमी जामा
कुछ रोते
खस्ताहाली का दुखड़ा
खस्ताहाली का दुखड़ा
पैबंद लगे
कपड़ों में मुस्कुराते
कपड़ों में मुस्कुराते
गरीब भी देखे हैं
हालात से
करके समझौता
करके समझौता
जीवन जीते जी भर के
प्याज
नमक मिल जाए
खा लेते पेट-भर रोटी
नमक मिल जाए
खा लेते पेट-भर रोटी
कहीं भोग छप्पन हैं
फिर पेट भूखा है
ओढ़ रखा है जो
दिखावे का सबने
दिखावे का सबने
वो आडम्बर झूठा है
इस आडम्बर ने ही
ज़िंदगी से
सुख-चैन है छीना
सुख-चैन है छीना
भरी अलमारियाँ
पोशाकें
अनगिनत कितनी
अनगिनत कितनी
एक भी शलीके का नहीं
यह ज़िंदगी भर का रोना है
कुछ लोग ऐसे भी हैं
जिन्हें
उतरन भी मिल जाए
वो
कुछ लोग ऐसे भी हैं
जिन्हें
उतरन भी मिल जाए
वो
चार कपड़ों में खुश हैं
ज़िंदगी तो
वही जीते हैं
वही जीते हैं
जो हर हाल में खुश हैं
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
चित्र गूगल से साभार
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-09-2019) को " महत्व प्रयास का भी है" (चर्चा अंक- 3452) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
हार्दिक आभार सखी
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
९ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteजी हार्दिक आभार
ReplyDeleteइस कला को सीखना आसान नहीं ... जीवन को हर पल हर लम्हे में जीना ही जीएवन है ...
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार आदरणीय
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