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Friday, April 19, 2019

यह कैसा इश्क

यह कैसा इश्क है 
आसमां का ज़मीं से
लगता है दूर कहीं 
मिलता है ज़मीं से
मगर यह सच नहीं है 
यह है सिर्फ फ़साना
चाह के भी गा न पाएं 
यह प्यार का तराना
जब गुजरता है इश्क 
इनका दर्द की इंतहा से
आँसुओं की बारिश
तब ज़मीं को भिगोती
बस यही है मिलन 
धरती का अंबर से
अंबर के आंँसुओ को 
तन पर सजाकर
पहनकर प्यार की 
यह धानी चूनरिया
शरमाकर अंबर की
बन जाती दुल्हनिया 
    ***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार 

4 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (21-04-2019)"सज गई अमराईंयां" (चर्चा अंक-3312) को पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    - अनीता सैनी

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  2. सुंदर प्रस्तुति सखी ।

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