दिल के ज़ख़्मों को कुरेद जाता
तुझसे जुदा होकर भी
ज़िंदा हूँ यह दर्द पीकर भी
बहुत हसीन थे वो लम्हे
झील का किनारे गुलमोहर के तले
चाँदनी रात में चाँद को देखते
जगमगाते तारे अम्बर पे सजे
चाँदनी रात की हसीं मुलाकात में
गीत प्रेम के तुम गुनगुनाते थे
गीत प्रेम के तुम गुनगुनाते थे
आज भी उस गीत को याद कर
आँखों में नमी आ जाती है
तुम संग जो ख्व़ाब बुने थे मैंने
बिखर गए वो रेत के जैसे
ज़िंदगी दिल तोड़कर निकल गई
समझ न पाए ज़िंदगी की पहेली
आज भी सब कुछ वही है
बदल गए तुम न जाने कैसे
तेरी बेरुखी से उजड़ा गुलमोहर
गुमसुम-सा तबसे खिला भी नहीं
ख्व़ाब जरुर टूटे पर आस बाकी है
मिलने की आस लिए बैठा हूँ
मिलने की आस लिए बैठा हूँ
साथ बिताए लम्हों को भूलूँ मैं कैसे
इस याद के सहारे जिंदा हूँ
चाँद की कला-सा प्यार परवान चढ़ा
चाँद की तरह ही अंधेरे में खो गया
ग़म नहीं मुझे जो यह दिल टूटा
गम है बस तेरा साथ छूटा
याद तो तुम्हें भी आती होगी
यह जुदाई तुझको भी तड़पाती होगी
पूनम का चाँद जब तुम देखते होगे
कहीं न कहीं तुझे मुझे याद करते होगे
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बहुत ही सुंदर रचना....सादर स्नेह सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteवाह बहुत सुन्दर रचना सखी भावातिरेक साफ दिख रहे हैं रचना में।
ReplyDeleteअप्रतिम ।
बहुत सुन्दर रचना सखी
ReplyDeleteसादर