जीवन की भाग-दौड़ में
बचपन की मासूमियत
कहीं खोती जाती
हमारी पीढ़ी कार्यों में अपने
रहती है इतनी व्यस्त
पास नहीं है उनके
बच्चों के लिए थोड़ा सा वक़्त
पास नहीं हैं दादा-दादी
कौन सुनाए परियों की कहानी
रहते दिन भर वो अकेले
साथ नहीं कोई जिसके संग खेले
मोबाइल संग जोड़कर नाता
बचपन मासूमियत खोता जाता
***अनुराधा चौहान***
बचपन की मासूमियत
कहीं खोती जाती
हमारी पीढ़ी कार्यों में अपने
रहती है इतनी व्यस्त
पास नहीं है उनके
बच्चों के लिए थोड़ा सा वक़्त
पास नहीं हैं दादा-दादी
कौन सुनाए परियों की कहानी
रहते दिन भर वो अकेले
साथ नहीं कोई जिसके संग खेले
मोबाइल संग जोड़कर नाता
बचपन मासूमियत खोता जाता
***अनुराधा चौहान***
बहुत सुन्दर सृजन सखी!
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteआपकी पहली कृति की मासूमियत भी बहुत प्यारी है।
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़कर।
सस्नेह प्रणाम
सादर।
उत्तम रचना
ReplyDeleteमन के सहज से अनुभव ।
ReplyDeleteसुंदर सखी।
हार्दिक आभार सखी
Deleteसच में एकाकी परिवार और मोबाइल की दुनिया ने बच्चों का बचपन और मासूमियत सब छीन ली।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
वाह!!!
हार्दिक आभार सखी
Deleteएकल परिवार और आज मोबाइल के दास बने लोग बच्चों की मासूमियत को डस रहे हैं ।सटीक सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteआज का सच है , पर फिर परिवर्तन तो संसार का नियम है .
ReplyDeleteहार्दिक आभार शिखा जी
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